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संध्या की दास्तान | खण्ड १ : उदय
#11
Episode 4 : Part IV

ढाई कमरे के मकान का तीसरा कमरा बिना छत का था। एक कमरे में ठाकुर, ठकुराईन और पुलकित सोते थे तो दूसरे में पुलकित की नानी और संध्या। पुलकित की नानी को संध्या फूटी आंख न सुहाती थी। उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी उसी पर आन पड़ी थी। पर वो उसे छूती तक नहीं थी। संध्या को खाना तभी मिलता जब पुलकित की नानी उसके रोने की आवाज़ से थक जाति। अगर बच्ची कभी कुछ गलती से मांग देती तो बुढ़िया उसे खड़ी खोटी सुनाती। कभी कभी तो एक दो झापड़ भी जड़ देती।

संध्या और डर गई थी। चुप चाप, कोने में दबी सी रहती। न तो कुछ बोलती, न हंसती, न खेलती। पुलकित बार बार उसके साथ खेलने के लिए जिद्द करता। और पुलकित के साथ खेल कर संध्या भी पुलकित होती थी। पर अगर गलती से पुलकित गिर जाए, चाहे गलती संध्या की हो या न हो, डांट संध्या को पड़ती। फिर ठकुराईन के आने पर घी मसाला मिला कर नानी की कहानी शुरू हो जाती। अगर कभी पुलकित का पैर फिसल गया तो "आज तो संध्या ने पुलकित का पैर ही तोड़ दिया होता। वो तो मैंने समय पर आकर उसे बचा लिया।" कभी संध्या का कुहनी पुलकित के सिर पर लग गया तो "आज तो ये कलमुही इसका आंख ही फोड़ देती। मैं कहती हूं तो तुम मेरी बात नहीं मानती। ये लड़की मनहूस है। कभी कुछ उल्टा सीधा हो गया तो फिर मुझे कुछ मत कहना।"

ठकुराइन अपनी मां के स्वभाव से परिचित थी। वो राधेश्याम ठाकुर के दरियादिली, अपनी किस्मत और परिस्थिति से गुस्सा ज़रूर थी, और ये गुस्सा अकसर उसके बात और व्यवहार में झलक आता था। पर वो मन से संध्या से चिढ़ती नहीं थी। जब दो महीने तक संध्या को ठाकुर जी वापस छोड़ने नहीं गए तो ठकुराइन को आभास होने लगा था कि ठाकुर जी बच्ची को अपने पास ही रखना चाहते हैं। जब पुलकित पेट में था तब ठाकुर जी ने कई बार कहा था की बेटी होगी। ठकुराइन का वात्सल्य भी संध्या के प्रति जागने लगा था। पर वो समय की मार झेल कर सख्त हो चुकी थी। उनका प्रेम वात्सल्य उनके चेहरे पर कभी गलती से भी नहीं आता। अपना प्रेम वो अपने मन में ही रखती थी। विशेषकर ठाकुर जी के सामने तो वो अपने चेहरे पर ऐसा भाव रखती की बच्ची को देखना तक नहीं चाहती हो। पर अपनी मां से जितना हो सके वो संध्या का बचाव करती थी। अपनी मां को कई बार कड़े शब्दों में स्पष्ट रूप से बोल चुकी थी कि किसी भी स्थिति में बच्ची पर हाथ न उठाए।

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संध्या की दास्तान | खण्ड १ : उदय
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#12
Episode 5 : Part I

संध्या के जीवन में सवेरा नौ वर्ष बीतने के बाद आया जब पुलकित की नानी चल बसी। अब उसे हर क्षण, हर पल प्रताड़ित करने वाला कोई नहीं था। संध्या की आंखें अभी भी ठकुराईन के स्नेह के लिए तरसती थी। पर ठकुराईन ने मानो कसम खा रखा हो कि वो उसे कभी स्नेह नहीं दिखाएगी। लेकिन वो कभी संध्या के साथ दुर्व्यवहार भी नहीं करती थी। संध्या के सामने आते ही उसका चेहरा जैसे जम जाता हो। ठकुराइन के भाव की ठंडक से संध्या का अंतर्मन तक सहम जाता। बेचारी सिर झुकाए चुप चाप अपना काम करती। नानी के जाने के बाद संध्या ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली थी। सुबह उठ कर ठकुराईन को खाना बनाने में मदद करती। दोनों में एक दो शब्द छोड़ कर कोई बात नहीं होती, जैसे दोनों को पता हो दोनों को क्या करना है। दोनों अपने अपने काम को करते। जब तक ठकुराईन बर्तन धोती संध्या सब्जी काट चुकी होती। जब तक ठकुराईन मसाला पीसती तब तक आंटा गूंथा हुआ होता। ठकुराइन रोटियां बेलती और संध्या रोटियां पकाती।

इतना अच्छा सामंजस्य देख कर कोई भी यही सोचता कि दोनों मां बेटी हैं। दोनों एक दूसरे की जरूरतों को समझते थे। बिना कुछ बोले संध्या को पता होता की कब चाची को थाली चाहिए, कब पानी चाहिए और कब कुछ नहीं। स्कूल से आकर वो अपने और पुलकित के लिए खाना बनाती और फिर दोनों साथ में खाते। फिर पुलकित खेलने चला जाता और संध्या अपना और पुलकित का कपड़ा साफ करती। ठकुराइन नहीं चाहती थी कि संध्या घर का काम करे। पर वो भी क्या करती, जॉब करते हुए घर को संभालना बहुत मुश्किल था। जहां तक हो सकता वो अपना काम खुद करती थी। अपना और ठाकुर जी का कपड़ा वो खुद साफ करती। वो संध्या की पढ़ाई को प्रभावित नहीं होने देना चाहती थी।

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#13
Episode : Part II

कपड़ा साफ करके संध्या अपने स्कूल का होमवर्क करती और फिर पुलकित के साथ ट्यूशन पढ़ने जाती। रात के खाने में चाची की मदद करके फिर पढ़ाई में लग जाती और बूढ़ी नानी के कमरे में सोने चली जाती। पुलकित के बड़े होने के बाद तीसरे कमरे में एस्बेस्टस डाल दिया गया था। पुलकित नानी के कमरे में और नानी नए कमरे में शिफ्ट हो गई। संध्या भी नानी के कमरे में सोती थी। एक कोने में दुबक कर। बुढ़िया रात को भी उसे चैन से नहीं सोने देती। कभी उसे पैर दबाने बोलती तो कभी पानी लाने।

बुढ़िया के आखिरी दिनों में शायद भगवान ने उसे उसके किए का सजा दिया। बुढ़िया कई दिनों तक लकवा ग्रसित रही और काफी दुख में रही। पर ये संध्या के लिए भी सजा था। दिन भर बुढ़िया की सेवा की जिम्मेदारी बिना किसी के कहे संध्या ने अपने ऊपर ले लिया था। आखिरी दिनों में तो उसने स्कूल जाना तक छोड़ दिया था। जाते जाते बुढ़िया संध्या का चेहरा देख देख कर बहुत रोती। शायद उसका दिल पिघल गया था, या शायद ऐसे ही अपनी मृत्यु के बारे में सोच सोच कर रोती हो।

बुढ़िया के मरने के बाद संध्या को उस कमरे में अकेला सोने में डर लगता था। पर बेचारी किससे कहती? क्या कहती? जितना हो सके कमरे के बाहर रहती। रात को कभी बत्ती बंद नहीं करती। हनुमान चालीसा गुनगुनाते गुनगुनाते सो जाती।

इतने वर्षों से कर्ज चुकाते‌ चुकाते ठाकुर जी ने काफी हद तक अपना कर्ज चुका लिया था, जिससे ब्याज में जाने वाली मासिक रकम घट चुकी थी। और फिर दोनों मियां बीबी की मासिक आय भी बढ़ चुकी थी। अब घर कुबेर का नहीं था तो सुदामा का भी नहीं था। मूलभूत आवश्यकताएं सहजता से पूर्ण हो रही थी।

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#14
Brilliant writing! Kudos!
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#15
अपडेट दो यार??
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#16
Episode 5 : Part III

इधर पुलकित और संध्या दोनों जवान हो रहे थे। संध्या का माहवारी शुरू हो चुका था। ठकुराइन ने चादर पर खून का धब्बा देखा तो सैनिटरी पैड का पैकेट ला कर संध्या के कमरे में रख दिया। संध्या को समझ नहीं आया कि पहनना कैसे है तो पहली बार ठकुराईन ने उससे थोड़ी देर बात कर उसे समझाया। थोड़ी देर के लिए ही सही, संध्या को मां का प्यार मिला था। वो उस रात रात भर रोती रही।

उसकी चूचियां तेज़ी से बढ़ने लगे थे। संध्या आठवीं क्लास में जा चुकी थी और उसके क्लास में कुछ लड़कियां बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड, किस और सेक्स की बातें करने लगी थी। संध्या दिखने में मनमोहक थी। दुबली पतली काया, छरहरा बदन। ऊंचाई अधिक नहीं होगी, मुश्किल से 5 फुट 3-4 इंच। अभी उसकी चूचियां ठीक से विकसित नहीं हुईं थीं। दरअसल उसकी चूचियां क्लास की और लड़कियों की तुलना में थोड़ी छोटी थी। पर उसके सुडौल नितम्ब शायद उसी कमी को पूरा करने के लिए इस तरह से विकसित हुए हों।

पुलकित भी जवान होने लगा था। उसका लंड खड़ा होने लगा था और उसपर बाल निकल आए थे। गीला स्वप्न जिसे भ्रामक और ढोंगी हकीमों ने स्वप्न दोष कह कर दुष्प्रचारित कर दिया है, कभी कभी पुलकित उसका अनुभव भी करता था। उसकी छाती पर बाल आने शुरू हो चुके थे। पुलकित और उसके दोस्त लड़कियों में दिलचस्पी लेने लगे थे। दौड़ती हुई लड़कियों के उड़ते स्कर्ट को देखना, स्कूल कॉरिडोर के रेलिंग पर खड़े होकर नीचे से गुजरने वाली लड़कियों को नापना, नॉनवेज चुटकुले सुनना और सुनाना। उसकी दिलचस्पी नंगी लड़कियों की तस्वीरों और गरमा गर्म कहानियों में बढ़ने लगी थी। उस समय कंप्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट उतना प्रचलित नहीं था। छात्र अमूमन किताबों पर ही निर्भर रहते थे। वो भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। मस्तराम की कहानियां, सरस सलिल पत्रिका और कुछ नंगी गोरी औरतों की चुदाई की तस्वीरें। उन्हीं तस्वीरों को देख कर पुलकित ने पहली बार जाना कि चुदाई में लंड चूत में डालते हैं। उसने घर आकर दो तकिए के बीच में चूत जैसा बना कर उसमे लंड पेलने की कोशिश की। पुलकित का लंड तुरंत तमतमा गया। उसने पहली बार लंड झड़ने के आनंद का अनुभव किया। 14 वर्ष आते आते पुलकित तकिए को अपना गर्लफ्रेंड बना कर उसके साथ नंगा सोना शुरू कर चुका था।
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#17
Hot update man!!
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#18
Update karo bro!
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#19
Hey man? Where is the update bro?
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#20
Episode 5 : Part IV

पुलकित कभी कभी पैसे बचा कर साइबर कैफे जाता और नंगी लड़कियों की चुदाई की तस्वीर देखता। कभी कभी तो वो अंडरवियर के अंदर रुमाल डाल लेता ताकि लंड के झड़ने से पैंट गीला न हो। घर आकर चुपके से गीले कपड़ों में अपना रुमाल डाल देता। 1-2 बार संध्या को रुमाल की महक और उसपर लगा वीर्य देख कर मन में कई सवाल उठे। पर वो पूछना सही नहीं समझी।

पुलकित के यौवन का मानसिक विकास तेज था तो संध्या के यौवन का शारीरिक विकास। दिन प्रतिदिन उसके कपड़े उसके स्तन और नितम्ब से चिपकते जा रहे थे। गरीबी के दिनों से ही घर में एक नियम सा बन गया था, नए कपड़े केवल दीवाली और होली में। होली में गर्मियों के कपड़े तो दीवाली में सर्दियों के। संध्या अपने नए कपड़े संभाल कर रखती और घर में अकसर पुराने कपड़े ही पहनती थी। कभी कभी तो वो पुलकित के पुराने कपड़े भी पहन लेती। सेक्स को लेकर उत्सुकता तो संध्या में भी था, पर उसके पास संचार के स्रोत सीमित थे। वो बस सखी सहेलियों से सुन कर ही मन में तस्वीर तैयार करती।

कुछ दिनों में पुलकित को एहसास हुआ कि 10 रुपए साइबर कैफे में बर्बाद करने से अच्छा एक मस्तराम की कहानी खरीदनी है। 10 रुपए में वो बार बार मस्ती कर सकता था। पर किताब बस स्टैंड पर मिलती थी। हिम्मत करके वो बस स्टैंड गया और वहां से किताब ले आया। पर अब नई समस्या आ गई। किताब घर में रखे कहां? कहीं मम्मी ने सफाई करते वक्त देख लिया तो? संध्या के रूम में रख सकता था, मम्मी उस कमरे में शायद ही कभी जाती है। पर संध्या को कैसे बोलेगा रखने के लिए? स्कूल बैग में रखना भी जोखिम भरा था। किसी ने स्कूल में देख लिया तो परेशानी हो जाएगी। समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं निकला। कभी बिस्तर के नीचे, कभी किताबों के बीच, कभी छज्जे पर, जहां जब पुलकित को लगता किसी की नजर नहीं पड़ेगी वहां डाल देता।

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