18-01-2021, 09:52 AM
(This post was last modified: 18-01-2021, 09:53 AM by Modern.Mastram.)
Episode 6 : Part IV
संध्या बेचैन होने लगी थी। वो बिल्कुल डूबने लगी थी। उसे कोई एक तिनका चाहिए था। कोई एक संकेत, कोई चिन्ह, कोई इशारा जो उसे बता सके कि पुलकित अभी भी उसे प्यार करता है, अभी भी उसकी फ़िक्र करता है। इस बेचैनी से बाहर निकलने के लिए संध्या ने एक और प्रयास किया।
वो अभी अभी नहा कर निकली थी, इलास्टिक वाले पजामे और पुलकित के एक पुराने शर्ट में। पुलकित को वो शर्ट बहुत पसंद था। छोटा हो जाने के बाद भी पुलकित संध्या को वो शर्ट नहीं पहनने देता था। पिछले साल तक संध्या के उस शर्ट पहनने पर उसने संध्या से लड़ाई की थी और उसे शर्ट पहनने से मना कर दिया था।
साल भर में संध्या के जिस्म के उभार तेज़ी से बढ़े थे। शर्ट अब बहुत टाइट था। शर्ट के बटन टूटने टूटने को हो रहे थे। वो शर्ट पहन कर पुलकित के सामने इठलाती हुई आई। बिना ब्रा के संध्या की चूचियां उस शर्ट में कसी हुईं थी। पुलकित ने देखा, पर उसका ध्यान शर्ट पर नहीं, उसमें दबे संध्या की चूचियों पर गया। उसने स्कैन कर संध्या के निप्पलों को लोकेट किया। संतरे में अंगूर ढूंढ़ कर कसमसाते हुए अपने सिर को नीचे झुका लिया। "ये शर्ट क्यों पहनी हो? बहुत टाइट है। दूसरा कपड़ा नहीं है क्या?" उसने सिर झुकाए झुकाए कहा।
पुलकित में पूर्ववत आक्रामकता की कमी देख कर संध्या दुखी तो हुई पर फिर भी उसे चिढ़ाते हुए बोली "मैं यही शर्ट पहनूंगी। आपको कोई प्रॉबलम है?"
पुलकित ने निष्ठुर होकर कहा "नहीं, मुझे क्या प्रॉबलम होगी? मैं तो तेरे लिए बोल रहा था। तुम्हें जो पहनना है पहनो।"
संध्या का दिल डूब गया। उसकी आंखें भर आईं। पर खुद को संभालते हुए वो बच्चों की तरह उछलते हुए आई और पुलकित के हाथ से किताब छीन कर भागी। "दिन भर क्या पढ़ते रहते हो? मैं भी तो देखूं ये है क्या?"
सम्पूर्ण उपन्यास अमेज़न पर पर मुफ्त में पढ़ा जा सकता है https://amzn.to/3pqAYue
संध्या बेचैन होने लगी थी। वो बिल्कुल डूबने लगी थी। उसे कोई एक तिनका चाहिए था। कोई एक संकेत, कोई चिन्ह, कोई इशारा जो उसे बता सके कि पुलकित अभी भी उसे प्यार करता है, अभी भी उसकी फ़िक्र करता है। इस बेचैनी से बाहर निकलने के लिए संध्या ने एक और प्रयास किया।
वो अभी अभी नहा कर निकली थी, इलास्टिक वाले पजामे और पुलकित के एक पुराने शर्ट में। पुलकित को वो शर्ट बहुत पसंद था। छोटा हो जाने के बाद भी पुलकित संध्या को वो शर्ट नहीं पहनने देता था। पिछले साल तक संध्या के उस शर्ट पहनने पर उसने संध्या से लड़ाई की थी और उसे शर्ट पहनने से मना कर दिया था।
साल भर में संध्या के जिस्म के उभार तेज़ी से बढ़े थे। शर्ट अब बहुत टाइट था। शर्ट के बटन टूटने टूटने को हो रहे थे। वो शर्ट पहन कर पुलकित के सामने इठलाती हुई आई। बिना ब्रा के संध्या की चूचियां उस शर्ट में कसी हुईं थी। पुलकित ने देखा, पर उसका ध्यान शर्ट पर नहीं, उसमें दबे संध्या की चूचियों पर गया। उसने स्कैन कर संध्या के निप्पलों को लोकेट किया। संतरे में अंगूर ढूंढ़ कर कसमसाते हुए अपने सिर को नीचे झुका लिया। "ये शर्ट क्यों पहनी हो? बहुत टाइट है। दूसरा कपड़ा नहीं है क्या?" उसने सिर झुकाए झुकाए कहा।
पुलकित में पूर्ववत आक्रामकता की कमी देख कर संध्या दुखी तो हुई पर फिर भी उसे चिढ़ाते हुए बोली "मैं यही शर्ट पहनूंगी। आपको कोई प्रॉबलम है?"
पुलकित ने निष्ठुर होकर कहा "नहीं, मुझे क्या प्रॉबलम होगी? मैं तो तेरे लिए बोल रहा था। तुम्हें जो पहनना है पहनो।"
संध्या का दिल डूब गया। उसकी आंखें भर आईं। पर खुद को संभालते हुए वो बच्चों की तरह उछलते हुए आई और पुलकित के हाथ से किताब छीन कर भागी। "दिन भर क्या पढ़ते रहते हो? मैं भी तो देखूं ये है क्या?"
सम्पूर्ण उपन्यास अमेज़न पर पर मुफ्त में पढ़ा जा सकता है https://amzn.to/3pqAYue
।
Read all stories and novels by Modern Mastram at Amazon (Not available in India) : https://www.amazon.com/dp/B09SBKHCGC
For Indian audience : find my Books here modernmastram.wordpress.com
My threads
बस का सफर
संध्या की दास्तान | खण्ड १ : उदय
Read all stories and novels by Modern Mastram at Amazon (Not available in India) : https://www.amazon.com/dp/B09SBKHCGC
For Indian audience : find my Books here modernmastram.wordpress.com
My threads
बस का सफर
संध्या की दास्तान | खण्ड १ : उदय