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गााँव के रंग सास, ससुर, और बहू के संग
#1
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गााँव के रंग सास, ससुर, और बहू के संग

दोस्तों, कहानी ‘मेले के रंग सास, बहूऔर ननद के संग’ में आपने पढ़ा कक ककस तरह वीणा अपने मामा, मामी,  और भाभी के साथ सोनपुर का मेला देखने गई और उसने मेले का भरपूर आनंद उठाया। मेला देखने के बाद सब अपने-अपने गााँव चले गये।

पेश है मेरी नई कहानी ‘गााँव के रंग सास, ससुर और बहूके संग’ जो वीणा के घर पहुाँचने के बाद शुरू होती है।

उम्मीद हैआप सबको कहानी बहुत पसंद आयेगी। अगर आपने पपछली कहानी नहीं पढ़ी हैतो उसे पहले पढ़ लेना अच्छा होगा, ताकी इस कहानी का आप पूरा आनंद उठा सकें। हालांकक यह कहानी मेरी अपनी ललखी हुई है, 

इस कहानी के कुछ पात्र बबक्स की मूल कहानी से ललये गये हैं। महाशय बबक्स, आपका बहुत धन्यवाद।

कहानी के पात्र (ककरदार)

01॰ वीणा- उम्र 22 साल; किगर 34-27-35, और रंग बहुत गोरा; कहानी की पहली वणणनकताण।
02॰ मीना- उम्र 23 साल; वीणा के ममेरे भाई बलराम की पत्नी; कहानी की दूसरी वणणनकताण।
03॰ गगररधर- उम्र 45 साल; वीणा के मामाजी और मीना के ससुर।
04॰ कौशल्या- उम्र 42 साल; वीणा की मामीजी और मीना की सास।
05॰ बलराम- उम्र 24 साल; वीणा के ममेरे भाई और मीना के पतत। 
06॰ ककशन- उम्र 18 साल; वीणा का ममेरा भाई और मीना का देवर।
07॰ रामू- उम्र 26 साल; गगररधर के घर का नौकर।
08॰ गुलाबी- उम्र 19 साल; रामूकी पत्नी।
09॰ अमोल- उम्र 22 साल; मीना का छोटा भाई।
10॰ पवश्वनाथ- उम्र 48 साल; मामाजी के लमत्र।
11॰ नीतू- उम्र 18 साल; वीणा की छोटी बहन।

पिय पाठकों, जैसा कक आप जानते हैं, मेरा नाम वीणा है। मैं गााँव मेहसाना, जजला रतनपुर की रहने वाली हूाँ।

मेरी उम्र 22 साल है, किगर 34-27-35, और रंग बहुत गोरा है। मेरी पपछली कहानी में मैंने सोनपुर के मेले में
मेरे मामा, मामी और उनकी बहूमीना के साथ अपने अनुभव के बारे में ललखा था। आपने पढ़ा ककस तरह मेले में मेरा और मीना भाभी का गैंग-रेप हुआ। बाद में मामाजी के दोस्त पवश्वनाथजी के घर में बलात्काररयों ने हम 
दोनों के साथ मेरी मामी की भी चुदाई की। और आपने यह भी पढ़ा ककस तरह मामाजी ने मुझेऔर अपनी बहू को भी चोदा।

कहानी के अंत में मामा, मामी, और भाभी ने योजना बनायी कक ककस तरह वे घर जाकर अपनी अवैध हवस का खेल जारी रखेंगे। मामी और भाभी अपने गााँव खानपुर के ललये हाजीपुर स्टेशन पर उतर गये। मामाजी मुझे घर
छोड़ने के ललये मेरे साथ आये। 

अब आगे की कहानी।

***** *****01 गााँव के रंग सास, ससुर, और बहूके संग- 1

मामाजी और मैंशाम तक एक तांगे में बैठकर गााँव मेहसाना पहुंचे। मामाजी के आवाज लगाते ही मेरे पपताजी,  मेरी मााँ, और मेरी छोटी बहन नीतूघर के बाहर आये। मामाजी ने अपने जीजा (मेरे पपताजी) और अपनी दीदी (मेरी मााँ) के पााँव छुये।

पपताजी- “गगररधर, कोई परेशानी तो नहीं हुई सोनपुर के मेले में?” पपताजी ने मामाजी से पूछा।

गगररधर- “नहीं, जीजाजी…” मामाजी मुझेआाँख मारकर बोले- “परेशानी कै सी? बहुत मजा ललया वीणा बबटटया ने…”

सुनते ही नीतूबबिर पड़ी- “पपताजी, देखखये वीणा दीदी ने ककतना मजा ककया मेले में। आप लोगों ने मुझे जाने ही नहीं टदया…”
पपताजी नीतूको बोले- “अरे तूकैसे जाती, बेटी? इतना बुखार था तुझे उस टदन…”

मामाजी बोले- “नीतूबबटटया, अगले साल जब सोनपुर में मेला लगेगा, हम तुझे जरूर ले जायेंगे…” यूं ही बातें करते हुए हम अन्दर आ गये। रात के खाने तक हम सब लसिण मेले के बारे में ही बातें करते रहे।

मामाजी और मुझे बहुत कुछ बना-बनाकर बोलना पड़ा, क्योंकी हम लोगों ने मेला तो कम देखा था और बाकी  सब कुकमण ही ज्यादा ककये थे।

रात को खाने के बाद हम सोने चले गये। मामाजी को मेरे कमरे में सोने को टदया गया। मैंउस रात नीतूके कमरे में सोई। नीतूकािी रात तक मुझसे मेले के बारे में पूछती रही किर थक कर सो गई। उसके सोते ही मैं 

बबस्तर से उठी, धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर आई और अपने कमरे की तरि गई, जहााँमामाजी सोये हुए थे।

मैंने दरवाजा खखटटाया। 

मामाजी ने दरवाजा खोला- “अरे वीणा बबटटया, तूयहााँइतनी रात को?” उन्होंने पूछा। कमरे में कािी अंधेरा था।
अटैच्ड बाथरूम की बत्ती जल रही थी जजससे थोड़ी रोशनी आ रही थी।

मैंने अपने पीछे दरवाजा बंद ककया और खाट पर जा बैठी- “मामाजी, मुझे नींद नहीं आ रही है…” एक कामुक सी अंगड़ाई लेकर मैंने कहा।

मामाजी- “तो मेरे कमरे में क्यों आई है?” आवाज नीची करके मामाजी ने पूछा।
मैं- “चुदवाने के ललये, और क्या?” मैंने कहा- “आप कल चले जायेंगे। किर न जाने मेरी ककश्मत में कब कोई लौड़ा होगा? इसललये आज रात जी भर के आपसे चुदवाऊाँगी…”

मामाजी- “ओह्ह… धीरे बोल, पागल लड़की…” मामाजी बोले- “यह पवश्वनाथ का कोठा नहीं, तेरे मााँ-बाप का घर  है। दीदी और जीजाजी ने सुन ललया तो मुझे गोली मार देंगे…”

मैं- “मैकुछ नहीं जानती…” मैंने हठ करके कहा- “मुझे आपका लौड़ा चाटहये…”

मामाजी हंसे और बोले- “लौड़ा तो तूऐसे मांग रही हैजैसे कोई लालीपाप हो…”
मामाजी मेरे सामने खड़े थे। मैंने टटोलकर लुंगी की गांठ को खोल दी तो लुंगी जमीन पर गगर गई। 

मैंने मामाजी का काला लण्ड अपने हाथ से पकड़ा। उनका मोटा लण्ड पूरा खड़ा नहीं था, पर ताव खा रहा था।
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 मैंने कहा- “मामाजी, आपका लण्ड लालीपाप से कुछ कम नहीं है। चूस के बहुत स्वाद आता है…” बोलकर मैंने उनका  लण्ड अपने मुाँह में ले ललया और सुपाड़े पर जीभ चलाने लगी।

मामाजी को मजा आने लगा। वह दबी आवाज में बोले- “आह्ह… चूस बबटटया, अच्छे से चूस…”

मैंमन लगाकर मामाजी के लण्ड को चूसने लगी और उनके पेल्हड़ को उंगललयों से सहलाने लगी। जल्दी ही उनका लण्ड िूलकर कड़क हो गया।

मामाजी मेरे लसर को पकड़कर मेरे मुाँह में अपना लण्ड पेलने लगे। कुछ देर बाद मामाजी ने मेरे मुाँह से अपना
लण्ड तनकाल ललया और बोले- “चल लेट जा…”

मैंने खुश होकर अपनी साड़ी उतारनी चाही।
मामाजी बोले- “कपड़े उतारने का समय नहीं है। बस लेटकर अपनी टांगें खोल। मैंजल्दी से तुझे चोद देता हूं…”

मैंने आपपत्त जतायी- “नंगे हुए बबना मुझे मजा नहीं आयेगा, मामाजी…”
मामाजी- “लड़की, अपने बाप के घर में अपने मामा से चुदवा रही हैयही कम हैक्या?” किर बोले- “इससे पहले  कक ककसी को भनक पड़ जाये, अपनी चूत मरा लेऔर तनकल यहााँसे। मेरे घर जब आयेगी तब इत्मीनान से चोदंूगा तुझे…”

मैं अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाकर बबस्तर पर लेट गई, और अपनी दोनों टांगें िैलाकर अपनी चूत मामाजी के आगे कर दी। मेरी चूत इतनी गरम हो गई थी के उससे पानी चूरहा था। मामाजी मेरे पैरों के बीच
बैठे । अपने 8” इंच के लण्ड का िूला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत के िांक में रखा और एक जोरदार धक्का मारकर 

अपना लण्ड 3-4 इंच घुसा टदय। मैंअचानक के धक्के से गचहुक उठी।
“चुप, लड़की। मरवायेगी क्या?” मामाजी ने डांटकर कहा।
“थोड़ा बताकर घुसाइये ना…” मैंने जवाब टदया।

मामाजी ने अब धीरे से दबाव देकर अपना पूरा लण्ड मेरी संकरी चूत में घुसा टदया और मेरे ऊपर सवार हो गये। 

मैंने मामाजी को बाहों में भर ललया और उनके होठों का चुम्बन करने लगी। मेरे होठों को पीते हुए मामाजी अपनी कमर उठा-उठाकर मुझे चोदने लगे।

हम दोनों की ही सांसेंतेज चल रही थी पर हम कोई आवाज नहीं कर रहे थे। बस चुपचाप अंधेरे में लेटे चुदाई

ककये जा रहे थे- “ठाप-ठाप, ठाप-ठाप…” अंधेरे में बस यही आवाज आ रही थी।
मुझे पेलते-पेलते मामाजी बोले- “वीणा, नीतूअब बड़ी हो गई है, है ना?”
मैं मामाजी के ठापों का कमर उठा-उठाकर जवाब दे रही थी। मैं बोली- “हााँ, इस साल 18 साल की होगी…”

“उसके मम्मे अब मीसने लायक बड़े हो गये हैं। अमरूद जैसे…”
“मामाजी, अब आपकी बुरी नजर मेरी छोटी बहन पर भी पड़ गई है…” मैंने कहा।

“क्यों इसमें क्या बुराई है?” मामाजी ठाप लगाते हुए बोले- “जब बड़ी भांजी को चोद सकता हूं तो छोटी को क्यों नहीं चोद सकता?”

“तो बुला लाऊाँ उसे यहााँ? उसकी बुर का भी उदघाटन कर दीजजये…” मैंने कहा।

“हो सकता हैउसकी बुर का उदघाटन पहले ही हो चुका हो…” मामाजी बोले- “आजकल की लड़ककयों का कुछ पता नहीं। अब तेरे को ही देख ना। शकल से तूचुदैल थोड़े ही लगती है। कभी मौका लमला तो िुसणत से नीतूको
चोदंूगा। तूउसे पटाने में मेरी मदद करेगी ना?”

“हााँ मामाजी…” मैंने कहा। चूत में मामाजी के मोटे लण्ड की ठोकर से मुझे इतना मजा आ रहा था कक मैंकुछ भी मानने को राजी थी।

धीरे-धीरे हमारी सांसें और तेज हो गई और मामाजी के धक्के भी तेज हो गये। 
अब मेरे ललये अपनी मस्ती को दबाये रखना मुजश्कल हो रहा था- “ओह्ह… मामाजी आह्ह… और जोर से  मामाजी… आह्ह…” मैं दबी आवाज में बोलने लगी।

मामाजी कमर चलाते हुए बोले- “चुप कर, साली। बाहर कोई सुन लेगा…”
पर मुझसे खुद पर काबूनहीं हो रहा था। मााँ, बाप, और छोटी बहन से छुपकर चुदवाने में अलग ही मजा आ रहा था। मैं बस झड़ने ही वाली थी। मामाजी को जोर से जकड़कर मैंने कहा- “और जोर से मामाजी। हाय और  जोर से… क्या मजा आ रहा हैचूत मराने में। उम्म… आह्ह… हाय मैं गई। हाय मैं गई, मामाजी…”

मेरी आवाज इतनी ऊाँची हो गई कक दरवाजे के बाहर कोई होता तो जरूर सुन लेता। मामाजी ने मेरे होठों को

अपने होठों से दबाकर बंद कर टदया, जजससे मैंकोई आवाज न तनकाल सकंू। किर जोरों की ठाप देते हुए वहमेरी चूत में झड़ने लगे। हम दोनों के मुाँह से लसिण- “ऊाँ घ-ऊाँ घ-ऊाँ घ…” की आवाज तनकल रही थी।

पूरा झड़ने के बाद मामाजी मेरे ऊपर कुछ देर लेटे हांिते रहे। मैंभी उनके नीचे लेटे अपनी चूत में उनके गरमवीयण के अहसास का मजा लेती रही।

To be continued!!
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