03-08-2019, 12:17 PM
हहा.. अहहा. सागर.." मुझे मालूम था ऊर्मि दीदी को क्या चाहिए. लेकिन मुझे उसके मूँ'ह से सुनना था इस'लिए मेने उसे पुछा,
"दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.."
"अरे बेशरम. मुझे मालूम था तुम ऐसे ही कुच्छ पुछोगे.. इस'लिए में भी बेशरम होकर तुम्हें बताती हूँ. चोद मुझे, सागर.. मेरी चूत में तुम्हारा लंड डाल के चोद दे मुझे!! . मेरी चूत की आग अप'ने लंड से मिटा दे." यस! यस!! यस!! यही सुन'ने के लिए में तरस रहा था. यही तो सुन'ने के लिए. बरसो से में भागदौड़ कर रहा था मेरी बहन अप'ने मूँ'ह से मुझे चोद'ने के लिए कहेगी ऐसी 'इच्छा' मेरे मन में बरसो से थी जो अब पूरी हो गई.
"दीदी. तुम उठो और मेरे उप्पर आ जाओ." मेने झट से उठाते हुए उसे कहा.
"उप्पर आ जाओ?. कहाँ??" उस'ने आश्चर्य से पुछा.
"मेरे उप्पर, दीदी. में नीचे लेटता हूँ.." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़'कर उसे ज़बरदस्ती उठाया और में पीठ'पर नीचे लेट गया.
"क्या कर रहे हो तुम, सागर? अब ये कौन सा नया तरीका है??" ऊर्मि दीदी ने अप'ने घुट'ने के बल खड़ी होकर पुछा.
"अरे, दीदी. इस तरीके से तुम अच्छी तरह से चुदाई का मज़ा ले सक'ती हो." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़ लिया और उसे अप'ने उप्पर खींच लिया. जब मेने ऊर्मि दीदी को खींचा तब मेने उस'का एक पाँव उठाकर मेरी कमर के दूसरे बाजू रख दिया. उसकी समझ में आया कि ये कौन सा तरीका है वो हंस'ते हंस'ते मेरी कमर पर बैठ गई. मेने उसे नीचे खींचा और में उसके होंठो को चूम'ने लगा. उसी सम'य नीचे मेने मेरे एक हाथ से उस'का चुत्तऱ पकड़'कर उसे थोड़ा उप्पर उठाया और दूसरे हाथ से मेरा लंड पकड़'कर उसकी चूत पर उप्पर नीचे घिस लिया. उसकी चूत पह'ले से गीली थी जिस'से मेरे लंड का सुपाड़ा भी गीला हो गया.
क्रमशः………………………
"दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.."
"अरे बेशरम. मुझे मालूम था तुम ऐसे ही कुच्छ पुछोगे.. इस'लिए में भी बेशरम होकर तुम्हें बताती हूँ. चोद मुझे, सागर.. मेरी चूत में तुम्हारा लंड डाल के चोद दे मुझे!! . मेरी चूत की आग अप'ने लंड से मिटा दे." यस! यस!! यस!! यही सुन'ने के लिए में तरस रहा था. यही तो सुन'ने के लिए. बरसो से में भागदौड़ कर रहा था मेरी बहन अप'ने मूँ'ह से मुझे चोद'ने के लिए कहेगी ऐसी 'इच्छा' मेरे मन में बरसो से थी जो अब पूरी हो गई.
"दीदी. तुम उठो और मेरे उप्पर आ जाओ." मेने झट से उठाते हुए उसे कहा.
"उप्पर आ जाओ?. कहाँ??" उस'ने आश्चर्य से पुछा.
"मेरे उप्पर, दीदी. में नीचे लेटता हूँ.." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़'कर उसे ज़बरदस्ती उठाया और में पीठ'पर नीचे लेट गया.
"क्या कर रहे हो तुम, सागर? अब ये कौन सा नया तरीका है??" ऊर्मि दीदी ने अप'ने घुट'ने के बल खड़ी होकर पुछा.
"अरे, दीदी. इस तरीके से तुम अच्छी तरह से चुदाई का मज़ा ले सक'ती हो." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़ लिया और उसे अप'ने उप्पर खींच लिया. जब मेने ऊर्मि दीदी को खींचा तब मेने उस'का एक पाँव उठाकर मेरी कमर के दूसरे बाजू रख दिया. उसकी समझ में आया कि ये कौन सा तरीका है वो हंस'ते हंस'ते मेरी कमर पर बैठ गई. मेने उसे नीचे खींचा और में उसके होंठो को चूम'ने लगा. उसी सम'य नीचे मेने मेरे एक हाथ से उस'का चुत्तऱ पकड़'कर उसे थोड़ा उप्पर उठाया और दूसरे हाथ से मेरा लंड पकड़'कर उसकी चूत पर उप्पर नीचे घिस लिया. उसकी चूत पह'ले से गीली थी जिस'से मेरे लंड का सुपाड़ा भी गीला हो गया.
क्रमशः………………………