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बहन की इच्छा
#21
हहा.. अहहा. सागर.." मुझे मालूम था ऊर्मि दीदी को क्या चाहिए. लेकिन मुझे उसके मूँ'ह से सुनना था इस'लिए मेने उसे पुछा,

"दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.."

"अरे बेशरम. मुझे मालूम था तुम ऐसे ही कुच्छ पुछोगे.. इस'लिए में भी बेशरम होकर तुम्हें बताती हूँ. चोद मुझे, सागर.. मेरी चूत में तुम्हारा लंड डाल के चोद दे मुझे!! . मेरी चूत की आग अप'ने लंड से मिटा दे." यस! यस!! यस!! यही सुन'ने के लिए में तरस रहा था. यही तो सुन'ने के लिए. बरसो से में भागदौड़ कर रहा था मेरी बहन अप'ने मूँ'ह से मुझे चोद'ने के लिए कहेगी ऐसी 'इच्छा' मेरे मन में बरसो से थी जो अब पूरी हो गई.

"दीदी. तुम उठो और मेरे उप्पर आ जाओ." मेने झट से उठाते हुए उसे कहा.

"उप्पर आ जाओ?. कहाँ??" उस'ने आश्चर्य से पुछा.

"मेरे उप्पर, दीदी. में नीचे लेटता हूँ.." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़'कर उसे ज़बरदस्ती उठाया और में पीठ'पर नीचे लेट गया.

"क्या कर रहे हो तुम, सागर? अब ये कौन सा नया तरीका है??" ऊर्मि दीदी ने अप'ने घुट'ने के बल खड़ी होकर पुछा.

"अरे, दीदी. इस तरीके से तुम अच्छी तरह से चुदाई का मज़ा ले सक'ती हो." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़ लिया और उसे अप'ने उप्पर खींच लिया. जब मेने ऊर्मि दीदी को खींचा तब मेने उस'का एक पाँव उठाकर मेरी कमर के दूसरे बाजू रख दिया. उसकी समझ में आया कि ये कौन सा तरीका है वो हंस'ते हंस'ते मेरी कमर पर बैठ गई. मेने उसे नीचे खींचा और में उसके होंठो को चूम'ने लगा. उसी सम'य नीचे मेने मेरे एक हाथ से उस'का चुत्तऱ पकड़'कर उसे थोड़ा उप्पर उठाया और दूसरे हाथ से मेरा लंड पकड़'कर उसकी चूत पर उप्पर नीचे घिस लिया. उसकी चूत पह'ले से गीली थी जिस'से मेरे लंड का सुपाड़ा भी गीला हो गया.

क्रमशः………………………
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#22
गतान्क से आगे…………………………………..

पह'ली बार मेरे लंड ने मेरी बहन की चूत को छुआ था. मेरे लंड का ऊर्मि दीदी के चूत को हुआ स्पर्श उसे उत्तेजीत कर'नेवाला था और मुझे पागल कर'नेवाला था. "शसस" ऐसा कर'ते कर'ते वो अप'ने घुट'नेपर उप्पर हो गई मानो उसकी चूत को कोई गरम रग छू रहा था. मुझे ज़्यादा उत्तेजीत होकर जल्दी झड़ना नही था इस'लिए में भी अप'नी भावनाएँ काबू कर रहा था. मेने दो तीन बार मेरा लंड उसकी चूत के दाने पर रगड़ दिया और फिर मेने मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत के छेद पर रख दिया. में उसकी चूत के छेद में लंड घुसाने की कोशीष कर'ने लगा लेकिन वो अंदर नही जा रहा था.

फिर ऊर्मि दीदी अप'नी टाँगों के बीच में अपना हाथ ले गयी और उस'ने मेरा लंड पकड़ लिया. अपना एक पाँव थोड़ा उप्पर करके उस'ने मेरे लंड का सुपाड़ा अप'नी चूत के छेद में घुसाते हुए सही जगह रख दिया. जैसे जैसे में धक्का देने लगा वैसे वैसे मेरा लंड मेरी बहन की चूत में लूप्त हो गया. जाहिर था के वो काफ़ी उत्तेजीत थी जिस'से उसकी चूत अच्छी ख़ासी गीली हो गई थी और इसी लिए मेरा लंड उसकी चूत में बड़ी आसानी से घुस गया था.

मेरा पूरा लंड मेरी बहन की चूत में था ऊर्मि दीदी बड़े आराम के साथ मेरा लंड अप'नी चूत में लिए मेरे उप्पर लेटी हुई थी. उसकी टाइट गीली चूत ने मेरे लंड को अच्छी तरह से घेर लिया था. जैसे किसी ने उसे जाकड़ लिया हो. कुच्छ पल के लिए हम वैसे ही पड़े रहे. फिर में मेरी कमर उप्पर नीचे हिलाने लगा और मेरा लंड उसकी चूत में अंदर बाहर कर'ने की कोशीष कर'ने लगा. वो झट से उठ गयी और उस'ने अप'ने चुत्तऱ थोड़े उठा लिए. अब मुझे जगह मिली और में उसके दोनो चुत्तऱ पकड़ के उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर कर'ने लगा.

उस'ने मेरे कंधे पर हाथ रखे और वो भी मेरे धक्के के साथ उप्पर नीचे होने लगी.

"नही.नही. दीदी! तुम ऐसे नही कर'ना. इससे में ज़्यादा उत्तेजीत हो जाउन्गा.. तुम अप'नी चूत का दाना मेरे लंड के उपर के भाग पर घिसो. उस से तुम्हें ज़्यादा उत्तेजना मिलेगी. हाँ. ऐसे ही. आगे पिछे. बराबर." मेने जैसे बताया वैसे ऊर्मि दीदी कर'ने लगी उसके ध्यान में आया के इस पोज़ीशन में वो कैसे अपना चूत'दाना मेरे लंड के उप्पर घिस सक'ती है और उत्तेजना प्राप्त कर सक'ती है उसकी रफ़्तार बढ़ गई.

नीचे में पीठ'पर लेटा हुआ था ऊर्मि दीदी मेरी कमर पर बैठी थी मेरा लंड जड़ तक उसकी चूत में था. वो आगे पिछे होकर अपना चूत'दाना मेरे लंड के उप्परी भाग पर घिस रही थी. में उप्पर देख'कर उसे निहार'ने लगा. उस'ने अप'नी आँखें ज़ोर से बंद कर ली थी.

अपना चेह'रा उप्पर कर के दाँतों से अप'ने होठों को काट'कर वो आगे पिछे हो रही थी. आगे पिछे होने से उसकी छाती के बड़े बड़े उभार हिचकोले खा रहे थे. कभी कभी मैं उसकी कमर'पर हाथ फिरा रहा था तो कभी उसके चूतड़'पर. कभी में उसके छाती के उभारो को निचोड़ता था तो कभी उसके उप्पर के निप्पल को उंगलीयों में पकड़'कर मसलता था.

ऊर्मि दीदी की स्पीड बढ़ गयी अब वो ज़्यादा ही ज़ोर से आगे पिछे होने लगी. उस'को सहारा देने के लिए मेने उसकी उंगलीयों में अप'नी उंगलीया फँसाई और उसके दोनो हाथ ज़ोर से पकड़ लिए. मेरे हाथ के नीचे का भाग मेने बेड'पर रखा हुआ था और में उसके हाथों को सहारा दे रहा था. वो भी मेरे हाथ ज़ोर से पकड़'कर उसके सहारे आगे पिछे हो रही थी. उसके मूँ'ह से सिस'कीया बाहर निकल'ने लगी. मेने नीचे मेरी कमर कस के रखी थी जिस'से उसे अपना चूत'दाना घिसते सम'य एक कड़ा आधार मिला रहा था.

उसकी सिस'कीया बढ़'ने लगी. अब वो हल'की चिन्खो में बदल गई. मेने जान लिया के अब उसके स्त'खलन का समय आया है. 'अहहा' 'उहहाहा' कर'ते कर'ते वो ज़ोर से मेरे लंड पर अप'नी चूत घिस'ने लगी. अचानक उसके मूँ'ह से एक हल'की चीख बाहर निकली और उस'का बदन कड़ा हो गया. उस'का बदन काँप रहा था ये मेने अनुभाव किया. ऊर्मि दीदी झाड़ गई थी! उसकी काम्त्रिप्ती हो गई थी!! धीरे धीरे उसकी गती कम कम होती गई. एक आखरी लंबी साँस छोड़'कर उस'का बदन ढीला हो गया और वो मेरे बदन पर गिर गई. मेने उसकी पीठ'पर मेरे हाथों से आलींगन किया और उसे ज़ोर से बाँहों में भींच लिया. मेरा कड़ा लंड अब भी उसकी चूत में था थोड़ी देर हम दोनो वैसे ही पड़े रहे.

कुच्छ समय बाद में अप'ने हाथ आगे ले गया और ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ पकड़'कर मेने उसकी कमर थोड़ी उप्पर उठाई. उसे उप्पर उठाने से मेरा आधा लंड उसकी चूत से बाहर हो गया. अब में कमर हिला के नीचे से धक्के देने लगा और उसकी चूत चोद'ने लगा. मेरे पैर घुट'ने में थोड़े मोड़'कर में पैरो के सहारे कमर हिला रहा था और उसकी चूत में लंड अंदर बाहर कर रहा था. वो वैसे ही शांत पड़ी थी में नीचे उसे चोद रहा था और उस धक्के से उस'का बदन उप्पर नीचे हो रहा था.

उसके छाती के उभार मेरी छातीपर दब गये थे और उस'का बदन उप्पर नीचे होने की वजह से मेरी छाती को उसकी छाती का मसाज मिल रहा था.

धीरे धीरे ऊर्मि दीदी वापस गरम होने लगी. मेरे चोद'ने से जो धक्के उसकी चूत'पर बैठ रहे थे उस'से उस'का चूत'दाना भी थोड़ा घिस रहा था. वो झट से उठ गई मेरी उंगलीयों में अप'नी उंगलीया फँसाकर उस'ने मेरा हाथ वापस पकड़ लिया और पह'ले जैसे वो अपना चूत'दाना मेरे लंड के उप्पर घिस'ने लगी. में जित'नी ज़ोर से नीचे से उसे चोद रहा था उत'ने ही ज़ोर से वो उप्पर से नीचे अप'नी चूत घिस रही थी. थोड़ी देर हम दोनो एक दूसरे के साथ ऐसे कर'ते रहे लेकिन आख़िर में रुक गया क्योंकी वो उप्पर थी इस'लिए वो अप'नी चूत'पर लगा धक्का उप्पर उठ के झेल'ती थी. लेकिन जब वो नीचे होकर मेरे लंड'पर ज़ोर देती थी तब मुझे तकलीफ़ होती थी इस'लिए मेने हार मानी और चुप'चाप पड़ा रहा, अप'नी कमर को कस के पकड़'कर मेने मॅन ही मन कहा के बाद मे जब में उसके बदन पर लेट कर उसे चोदून्गा तब में इस बात का बदला लूँगा.

पह'ले जैसी ऊर्मि दीदी की रफ़्तार बढ़ गई. इस बार वो कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर लगा रही थी. उसके मूँ'ह से अजीबसी आवाज़े आने लगी. मेने बड़ी मुश्कील से अप'ने आप को संभाल रखा था. दिल कहा रहा था के उसे चोद के में भी उसके साथ झाड़ जाउ लेकिन मुझे इत'ने जल्दी मेरा पानी छोड़ना नही था. मुझे मेरी बहन को मेरे बदन के नीचे लेकर चोदना था और फिर उसकी चूत में मेरा वीर्य मुझे छोड़ना था.
वापस ऊर्मि दीदी के मूँ'ह से हल'की चीख बाहर निकली!! 'अहहा' 'उहहा' 'उफ़ा' वग़ैरा कर'ते कर'ते वो शांत होती गई. हमारी उस पह'ली चुदाई में मेरी बहन दूसरी बार झाड़ के काम्त्रिप्त हो गई थी!! स्त्रियो का यही एक अच्छा होता है. एक के बाद एक वे कई बार काम्त्रिप्त हो सक'ती है. और मेरी बहन को तो पह'ली बार ऐसी काम्त्रिप्ती का आनंद मिला रहा था इस'लिए वो जी भर के अप'ने भाई से ये सुख ले रही थी.

अब तक तीन बार उसकी काम्त्रिप्ती हो गई थी लेकिन में एक ही बार झाड़ गया था और दूसरी बार झाड़'ने के लिए बेताब हो रहा था. पह'ली बार में अप'नी बहन के मूँ'ह में झाड़ गया था और अब मुझे उसकी चूत में मेरा वीर्य छोड़'कर झड़ना था और मेरी कई बरसो की 'इच्छा' पूरी कर'नी थी.

ऊर्मि दीदी थक गई थी और वापस मेरे बदन पर पड़ी थी. वो ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. मेने धीरे से उसे मेरी बाएँ तरफ धकेल दिया. उसकी चूत से मेरा लंड बाहर निकाला और वो मेरे बाजू में पीठ'पर गिर गई. में उठा और ऊर्मि दीदी के पैरो तले घुट'ने पर खड़ा रहा. पह'ले तो में उसके नंगे बदन को निहार'ने लगा. अप'ने आप मेरा हाथ मेरे कड़े लंड की तरफ गया लेकिन ऊर्मि दीदी के चूत रस से मेरा लंड गीला हो गया था इस'लिए मेने मेरा लंड जड़ पर पकड़ा लिया और हिल'ने लगा. मुझे मेरा लंड वैसे ही उसकी चूत रस से गीला रखना था ताकी उसे वापस चोदते सम'य उसकी चूत में लंड डाल'ने में आसा'नी हो.

अप'नी सुधबूध खो कर ऊर्मि दीदी पड़ी थी. उस'का दायां पैर घुट'ने में मुड़ा था और बाया पैर तिरछा हो गया था उस'का दायां हाथ बाजू में सीधा पड़ा था और बाया हाथ उसके सर की दिशा में मुड़ा हुआ था. उसकी आँखें बंद थी और वो ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. साँसों के ताल पर उसकी भरी हुई छाती उप्पर नीचे हो रही थी.

उसके निप्पल कड़े हो गये थे. उसकी जांघों के बीच उसके चूत के भूरे बाल का जंगल चूत रस से गीला होकर चमक रहा था. मेरी बहन एक रंडी की तरह मेरे साम'ने नंगी पड़ी थी और में किसी मस्त सांड़ की तरह लंड कड़ा करके उसे चोद'ने के मूड में था.

अब मुझ'से रहा ना गया. मेने नीचे झुक के ऊर्मि दीदी का बाया सीधा पाँव उप्पर कर के मोड़ लिया और उसके पैरो के बीचवाली जगह में मैं सरक गया. जब मेने उस'का पाँव पकड़ा तब उस'ने अप'नी आँखें खोल दी. उसकी समझा में आया के अब क्या होनेवाला है. खैर! उसे मालूम था के में उसे चोद'नेवाला हूँ इस'लिए उसे अजीब अनुभव नही हुआ और वो शांत पड़ गयी.

में और आगे हो गया. ऊर्मि दीदी के पैर और थोड़ा फैलाकर मेने उसकी चूत को अच्छी तरह से खोल कर, एक हाथ से मेरा लंड पकड़'कर मेने उसे उसकी चूत'पर उप्पर नीचे घिसा. फिर उसकी छेद में सुपाड़ा डाल'कर चूत के छेद का जायज़ा लिया और धीरे से धक्का लगाया. उसकी चूत में मेरा लंड घुस'ने लगा. जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत में पूरा समा गया वैसे में उसके बदन'पर लेट गया. मेरे शरीर का भार मेरे हाथों पर था जो उसकी बगल से मेने उसके कंधे के नीचे रखे थे.

थोड़ी देर मेरी बहन की चूत में लंड डाले में चुप'चाप पड़ा रहा और उसके होंठो को चूम'ने लगा. चूम'ते चूम'ते उस'ने अपना मूँ'ह खोला और फिर उसकी जीभ को चुसते चुसते में कमर हिलाने लगा और उसे चोद'ने लगा. में उसे हलके से धक्के देकर चोद रहा था. फिर मेने उसे अप'ने हाथ से ज़ोर से कस लिया और मेरा लंड उसकी चूत में जड़ तक रख के में उप्पर नीचे होने लगा. जिस'से उस'का चूत'दाना मेरे लंड के उप्परी भाग से घिस'ने लगा.

मेरा वैसे चोदना ऊर्मि दीदी को पसंद आया!! क्योंकी उस'ने धीरे से आँखें खोल के मेरी तरफ एक मादक नज़र से देखा और हंस'ते हंस'ते वो भी मेरा साथ देने लगी. उस'ने अप'ने पैरो से मेरी कमर को जाकड़ लिया था और उप्पर नीचे होकर वो अप'नी चूत मेरे लंड पर घिस'ने लगी. मेरी बहन को वैसे चोद'कर उसे वापस काम उत्तेजीत कर'ना ही मेरा मकसद था. मुझे और एक बार उसे काम्त्रिप्त कर'ना था. में चाहता था उसके अंदर इस कामसुख की प्यास हमेशा के लिए जाग उठे. इस'लिए जान बुझ'कर में उसे इस तरह चोद रहा था जिस'से उस'का चूत'दाना घिस जाए.

और वैसे ही हुआ!! ऊर्मि दीदी उत्तेजीत होकर ज़ोर ज़ोर से हिल'ने लगी और थोड़े ही समय में वो वापस झाड़ गई. जैसे ही वो काम्त्रिप्त हो गई वैसे वो वापस थक कर शांत पड़ गयी. फिर में बड़े उत्साह के साथ ऊर्मि दीदी को चोद'ने लगा. अब में ज़ोर ज़ोर से धक्के देकर उसे चोद रहा था. मेरा लग'भग पूरा लंड उसकी चूत से बाहर निकाल'कर में वापस अंदर धास देता था. उसे तकलीफ़ हो रही थी के नही क्या मालूम.. लेकिन वो शिकायत नही कर रही थी और चुप'चाप मेरे धक्के सह रही थी.

बीच बीच में मैं नीचे झुक के उसके छाती के उभारो को चूस'ता रहा और कभी कभी उन्हे हाथ से दबाते दबाते उसे चोद रहा था.

मेरे लंड में प्रेशर बन'ने लगा! झाड़'ने की भावनाएँ मेरे लंड के अंदर उच्छल'ने लगी. में ऊर्मि दीदी के बदन'पर पूरी तरह से लेट गया और उसे ज़ोर ज़ोर से चोद'ने लगा. में मेरी बहन को चोद रहा था और अब उसकी चूत में मेरा पहेला पानी छोड़'ने वाला था. ये भावना मुझे पागल कर रही थी. में हो सके उत'नी ज़्यादा से ज़्यादा उत्तेजना से उसकी चूत में पानी छोड़ना चाहता था और मेरी उत्तेजना और बढ़े इस'लिए में बड़बड़ा'ने लगा,
"ओह ! दीदी. तुम्हारी चूत कित'नी कऱी है. एक बच्चा होने के बाद भी तुम्हारी चूत इत'नी टाइट है. तुम्हारी चूत ने मुझे इतना उत्तेजीत किया है के में दीवाना हो गया हूँ. दीदी!. में इत'नी ज़ोर से तुम्हें चोद रहा हूँ. और तुम्हें तकलीफ़ भी नही हो रही है. यानी तुम्हारी चूत कित'नी गहरी है. मेरा पूरा लंड तुम्हारी चूत में समा जा रहा है.. यानी मेरा लंड तुम्हारी चूत की गहराई के माप का बना है. ओह दीदी!. मुझ'से अब रहा नही जाता. दीदी. दीदी.

मेरी लाडली, दीदी. तुम ग्रेट हो, दीदी. तुम'ने अप'ने भाई को चोद'ने दिया. उस'का लंड अप'नी चूत में लिए तुम चुदवा रही हो. यू आर ग्रेट, दीदी. आया. आया. आया अब बाहर, दीदी. दीदी." सतसट करके मेने और कुच्छ धक्के मेरी लाडली बहन की चूत में लगाए और आखरी गहरा धक्का उसकी चूत में देकर में उस'से ज़ोर से चिपक गया.

फिर एक के बाद एक मेने मेरे वीर्य की पिच'कारीया उसकी चूत में छोड़ दी. पह'ले की दो तीन ज़ोर की पिच'कारीया उस'को चिपक'कर छोड़'ने के बाद मेने बाद की हल'की पिच'कारीया उसकी चूत में धीरे से धक्के देकर छोड़ दी. मेरा वीर्य स्त'खलन इतना पावरफुल था के में थक गया और ऊर्मि दीदी के बदन'पर गिर गया. में उसके बदन पर गिरा तो था लेकिन फिर भी मेरा ज़्यादा तर भार मेरे हाथों पर ही था.
हम बहेन-भाई की पह'ली चुदाई से हम दोनो भी थक गये थे और पसीने पसीने हो गये थे. में धीरे से ऊर्मि दीदी के बदन से बाजू में लुढ़क गया और वैसे ही उस'से सट के पड़ा रहा. मुझे ऐसा लगा रहा था के में बेहोश हो जाउन्गा. इस'लिए मेने आँखें बंद रखी थी और हम वैसे ही सो गये!!

गहरी रात में कभी तो मेरी नींद खुल गई. पह'ले तो मेरी समझ में नही आया के में कहाँ हूँ बाद में झट से मेरी लाइट जल गई! मेने फिर के मेरे बाजू में देखा. ऊर्मि दीदी मेरे बाजू में चुप'चाप सोई पड़ी थी वो अब भी पूरी नंगी थी और मेरी तरफ पीठ कर के बगल'पर सोई थी. में भी तो पूरा नंगा था.

झट से मेरे मन के परदे पर सुबह सी हो गई. घटनाओं का अक्शन रीप्ले दिखने लगा. कैसे मेरी बहन की खंडाला देख'ने की 'इच्छा' मेने पूरी की. उसके साथ साथ मेने उसकी बहुत सी छोटी मोटी 'इच्छाए' भी पूरी की. मेरी 'बहेन की इच्छा' पूरी कर'ते कर'ते मेने भी मेरी 'इच्छा' कैसे पूरी कर ली. मेरे मन में कैसे मेरी बहन को चोद'ने की 'इच्छा' थी. और हक़ीकत में वो 'इच्छा' पूरी होते होते मुझे कैसे अलग ही सुख मिला. जिसका अनुभव मेने पह'ले कभी किया नही था. मुझे मेरी ख़ुशनसीबी पर फक्र अनुभव हुआ और मुझे हँसी आई.!

में उठ गया और हम दोनो के नंगे बदन'पर रज़ाई ओढ़'कर वापस सो गया. धीरे से में ऊर्मि दीदी की तरफ सरक गया और उससे पिछे से चिपक गया. उसकी बगल से हाथ डाल के मेने उसकी छाती हाथ में पकड़ ली और उसके चुतडो के बीच में मेरा लंड ज़ोर से दबा के में उस'से चिपक गया. उसकी नींद खुल गई के नही ये मालूम नही लेकिन उस'ने अप'ने चुत्तऱ पिछे मेरे लंड पर और दबाए. मेरी बहन के नंगे बदन की गरमी लेकर में धीरे धीरे नींद के आगोश में चला गया.

दूसरे दिन सुबह आठ बजे के करीब हमारी नींद खुल गई. में अब भी ऊर्मि दीदी को पिछे से चिपक के सोया था. मेरा लंड कड़ा हो गया था और उसकी दोनो जांघों के बीच छिप गया था. मेरी नींद क्यों खुल गई ये अब मेरी समझ में आया!! ऊर्मि दीदी मेरा कड़ा लंड, जो उसकी जांघों से आगे आया था, उसे सहला रही थी. मेने खच से एक धक्का दिया और मेरा लंड उसकी जांघों के बीच आगे पिछे कर'ने लगा.

थोड़ी देर वैसे कर'ने के बाद में और ज़्यादा उत्तेजीत हुआ. झट से उस'से दूर होकर मेने उसे खींच'कर अप'नी पीठ पर सीधा किया.

फिर ऊर्मि दीदी के बदन'पर च्चढ़'कर मेने मेरा लंड उसकी चूत'पर रख एक ही धक्के में मेने मेरा लंड उसकी चूत में धास दिया और में उसे चोद'ने लगा. उसकी चूत उत'नी गीली नही थी जित'नी रात को थी इस'लिए मुझे लंड अंदर बाहर कर'ते कर'ते तकलीफ़ हो रही थी लेकिन उस तकलीफ़ से चोद'ने का आनंद ज़्यादा मीठा था. इस'लिए में उसे चोदते रहा. कुच्छ ही पल में में झाड़'ने की सीमा तक पहुँच गया और उसकी चूत में वापस एक बार मेने मेरा पानी छोड़ दिया.

झाड़'ने के बाद थोड़ी देर में उसके बदन पर लेटा रहा और फिर में उठ गया.

बाथरूम में जाकर मेने हाथ मुँह धोए और दाँत वग़ैरा ब्रश कर के फ्रेश हो गया. फिर बाहर आकर मेने ऊर्मि दीदी को उठाया और उसे बाथरूम में भेज दिया. मेने उसे कहा कि नहाना छोड़ के सब कुच्छ कर ले क्योंकी हम दोनो इकठ्ठा नहाएँगे. उस कल्पना से वो काफ़ी खुश हो गई. जब उस'ने बाकी सब फिनीश किया तब उस'ने मुझे अंदर से आवाज़ दी. अंदर आने के बाद मेने शावर चालू कर के ठंडा और गरम पानी अडजेस्ट किया.

फिर हम दोनो भाई-बहेन एक दूसरे के बदन को अच्छी तरह से घिस के और साबून लगा के शावर के नीचे नहाए. वैसे शावर के नीचे अप'नी बहन के साथ नहाने की मेरी 'इच्छा' थी जो अब पूरी हो गई. ऊर्मि दीदी ने भी मुझ'से कहा कि उसकी भी 'इच्छा' थी के शावर के नीचे वैसे नहाए. लेकिन मेरे साथ नही तो अप'ने पति के साथ.. नहाने के बाद हम दोनो ने एक दूसरे के बदन टावाल से अच्छी तरह पोंच्छ लिए और फिर हम बाहर आए.

हमें दस बजे की बस पकड़'नी थी इस'लिए हम जल्दी जल्दी तैयार हो गये. रूम के बाहर निकल'ने से पह'ले हम दोनो ने एक दूसरे की आँखों में आँख डाल'कर देखा और ज़ोर से एक दूसरे को कस'कर पकड़ लिया. थोड़ी देर एक दूसरे की बाँहों में रह'कर हम चुंबन लेते रहे. फिर बड़ी मुश्कील से हम एक दूसरे से अलग हो गये. हमारे बॅग उठाकर हम हंस'ते हंस'ते उस रूम से बाहर निकले.

रूम से बाहर निकलते हुए मेरे मन में विचार था के कल रात इस रूम के अंदर आते सम'य हम दोनो भाई-बहेन थे. और अब इस रूम से बाहर जाते जाते हम दोनो में एक अलग ही नाता बन गया था. नाता. एक स्त्री-पुरुष का नाता.. एक नर- नारी का नाता.

समाप्त
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