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Full Version: बस का सफ़र
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Episode 1

नीता शादी के बाद दूसरी बार अपने मायके जा रही थी। पहली बार तो शादी के कुछ ही दिन बाद गयी थी , पर उसके बाद उसे मौका नहीं मिला था। उसे बिलकुल भी पता नहीं था कि वो घर जाने के नाम से खुश हो या उदास। ऐसे देखें तो नीता का जीवन खुसहाल था। अपने पति रवि के साथ वो ख़ुशी ख़ुशी रांची में रहती थी। रवि एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी में सीनियर इंजीनियर था। एक और दो नंबर मिला कर अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। एक सुखी जीवन के लिए ज़रूरी सभी चीजें थीं उसके पास। बस शादी के 4 साल बाद भी वो माँ नहीं बन पायी थी। उसकी सास कई बार बोल चुकी थी डॉक्टर से दिखवाने को, पर रवि हर बार किसी न किसी बहाने से बात को टाल देता। 



नीता को पूरा विश्वास था की कमी उसके अंदर नहीं है, कमी रवि में है और इसलिए शायद रवि डॉक्टर के पास जाने से हिंचकता है। बिस्तर में भी रवि अधिक देर नहीं टिक पाता था। नीता ने सेक्स के बारे में जो भी सुना था उसे कभी पता ही नयी चल पाया की वो सब केवल कहने की बातें हैं या बस उसके जीवन में ही वो आनंद नहीं है जो उसने लोगों से सुना है। उसकी सहेलियों ने उसे कई बार बताया की संभोग में शुरुआत में दर्द तो होता है पर उसके बाद स्वर्ग सामान आनंद है। उसने न तो दर्द की ही अनुभूति की और न ही स्वर्ग समान आनंद की। उसके लिए संभोग बस 5 मिनट का एक रिचुअल मात्र था - रवि उसकी साड़ी को ऊपर सरका कर उसके कमर के नीचे, जांघों के बीच में छिपी अँधेरी गुलाबी गुफा में अपना मिर्च के अकार का शिश्न घुसाता और क्षण भर में ही निढ़ाल हो कर सो जाता। नीता तो ये भी नहीं जानती थी की रवि का लण्ड बड़ा है या छोटा! उसने कभी किसी और मर्द का लण्ड देखा भी नहीं था। 


खैर, अपनी मनःस्थिति का पता नीता ने कभी भी रवि को नहीं चलने दिया, और अपने व्यवहार और बातों में वो हमेसा एक आदर्श पत्नी की तरह थी। आज उसे ये चिंता सताए जा रही थी कि उसकी गांव की सहेलियाँ जब उससे चुदाई के बारे में पूछेंगी तो वो क्या कहेगी? रजनी ने जब बताया था तब नीता की पैंटी गीली हो गयी थी। शायद रजनी ने झूठ कहा होगा, ऐसा तो कोई मज़ा नहीं आता। या रवि मज़ा देने में समर्थ नहीं है? क्यूंकि कुणाल ने जब होली में उसे रंग लगाया था तो उसे अजीब सा एहसास हुआ था। कुणाल ने जान बूझ कर किया था या अनजाने में, ये नीता नहीं जानती, पर उसने उसे रंग लगते समय अपना हाथ नीता के पुष्ट उरोजों पर रख दिया था। वो रंग से बचने की कोशिश में नीचे फिसल गयी थी, नीता का पल्लू उसके ब्लाउज पर से हट गया था, और भाग दौड़ में उसके ब्लाउज के ऊपर का एक बटन भी खुल गया था। कुणाल उसके बदन से लिपट कर उसे रंग लगा रहा था। नीता अपने मुंह को रंग लगने से बचाने के लिए पेट के बल लेट कर अपने मुंह को हाथ से छिपा रही थी। उसकी साड़ी सिमट कर उसके घुटने के ऊपर आ चुकी थी। हलके गुलाबी रंग में रंग कर उसकी सफ़ेद चिकनी जांघें गुलाब की पंखुड़ी के समान लग रही थी। कुणाल उसकी पीठ से लिपटा हुआ एक हाथ से उसके चेहरे को चेहरे पर रंग लगाने का प्रयास कर रहा और दूसरा हाथ नीता के स्तन को दबा रहा था। नीता को जब यह एहसास हुआ कि उसके स्तन पर किसी गैर मर्द का हाथ है तो उसके जिश्म में करंट सा दौड़ गया। उसके दिल की धड़कन इतनी तीव्र हो गयी थी कि मानो उसका ह्रदय फट पड़ेगा। उसने अपने नितम्ब पर कुछ कठोर सा महसूस किया था, शायद कुणाल का लण्ड हो। पर इतना बड़ा कैसे? हो सकता है उसकी जेब में मोबाइल फ़ोन रहा हो! चाहे जो हो, उस घटना के तीन दिन बाद तक नीता बेचैन रही थी। उस घटना के स्मरण मात्र से उसके शरीर में स्पंदन होने लगता, उसके हृदय की गति तेज हो जाती, उसके जांघों के बीच अग्नि और जल के अद्भुत मिलन का एहसास होता। 


इस घटना को बीते 4 महीने हो गए थे। पर आज भी वो कुणाल के सामने जाने में झिझकती थी। शायद रवि ही नामर्द है। शायद उसकी किस्मत में ही यौवन का आनंद नहीं है और शायद कुणाल के साथ बीते वो क्षण ही उसके जीवन का सबसे आनंददायक पल थे। 


“अरे नीता, इतनी देर से तैयार हो रही हो? बस छूट जाएगी भई!” रवि की आवाज़ नीता के कानों में पड़ी। 


“मैं तैयार हूँ, आप गाड़ी निकालिये।” नीता अपना पर्स उठा कर बेडरूम से बाहर आयी। 


“माधरचोद एमडी! साले को अभी ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट चाहिए था!” रवि अपने बॉस पर गुस्सा का इज़हार कर रहा था। “तुम अकेली चली जाओगी न? मैं हरामज़ादे के मुंह पर रिपोर्ट फेंक कर जल्दी से जल्दी चला आऊंगा।”


रवि के मुंह से गाली सुन कर नीता को विचित्र लगा। क्या बिस्तर में अपनी नामर्दी को छिपाने के लिए रवि अपने शब्दों में मर्दानगी दिखाता है? या कंस्ट्रक्शन लाइन में लोगों की भाषा ही ऐसी होती है? “आप फिक्र मत कीजिये, वहां बस स्टैंड पर पापा आ जायेंगे मुझे रिसीव करने, और यहाँ तो आप चल ही रहे हैं छोड़ने। बांकी सफ़र तो बस में बिताना है। जल्दी चलिए, लेट हो जायेगा।” नीता ने रवि को कम और खुद को अधिक आश्वासन दिया। 


दोनों गाड़ी में बैठ कर बस स्टैंड की तरफ निकले। “माधरचोद! ये ट्रैफिक। भोंसड़ी वाले अनपढ़ गँवार सब पॉलिटिक्स में आएंगे तो यही होगा। सालों के दिमाग में सड़क बनाते समय ये बात नहीं आती कि कल इसपर और भी गाड़ियां दौड़ेंगी। आज हर कुत्ते बिल्ली के पास गाड़ी है और रोड देखो - बित्ते भर का।” हॉर्न की आवाज़ के बीच रवि खुद पर चिल्ला रहा था। “हरामज़ादे बाइक वालों की वजह से जाम लगता है। जहाँ जगह मिला घुसा दिए।” रात के 8 बज चुके थे, और बस खुलने का समय 7 बजे ही था।  आपको जितनी जल्दी होगी ट्रैफिक उतना ही जाम मिलेगा जैसे कोई कहीं से बैठा देख रहा हो और आपके साथ मज़ाक कर रहा हो। जान बूझ कर आप जिस जिस रस्ते जा रहे हैं उन्ही रास्तों पर जाम होगा, और आपके जाम से निकलते ही जाम भी ख़तम हो जाएगी मानो जाम आपको देर कराने के लिए ही लगी हो। बस स्टैंड पहुँचते पहुँचते रात के 9 बज चुके थे। 


This is excerpt from novel "Bus ka Safar" 
(19-11-2020, 12:17 AM)Modern.Mastram Wrote: [ -> ]
Episode 2

बस स्टैंड पर 2-3 छोटी रूट की बस के अलावा कोई बस नहीं थी, और वहां लोग भी बहुत कम थे। रवि बुकिंग काउंटर वाले के पास चिल्ला रहा था - “सब के सब लुटेरे हैं! फ़ोन नहीं करना था तो मोबाइल नंबर लिया क्यों? जब पैसेंजर गया ही नहीं तो पैसे किस बात के?”


वो बुकिंग क्लर्क से पैसे वापस मांग रहा था। नीता उसके बगल में खड़ी थी। उसकी लाल ब्लाउज के साइड से उसकी काली ब्रा का फीता बाहर निकला हुआ था। क्लर्क के सामने बैठा एक अधेड़ उम्र का आदमी उसे घूर रहा था। और घूरे भी क्यों न? नीता की जिन चूचियों को उस ब्रा ने ढक रखा था वो 34 इंच की थी। 26 साल की गोरी, लम्बी छरहरे बदन वाली नीता हलोजन लैंप के सामने खड़ी थी जिससे उसके होंठों पर लगी लाल लिपस्टिक चमक कर मादक दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। जैसे जैसे नीता के उरोज सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे, वैसे वैसे उस अधेड़ के लिंग में यौवन का संचार हो रहा था। 55 साल के उस बुढ्ढे का रंग जितना काला था बाल उतने ही सफ़ेद। उसकी धोती उसके जांघों तक ही थी और आँखें लाल, मानो अभी अभी पूरी एक बोतल चढ़ा ली हो। उसके मुंह की बास दूर खड़ी नीता महसूस कर सकती थी। 


जब नीता की नज़र उस बुढ्ढे पर पड़ी तो नीता सहम गयी। औरतों में मर्दों की नियत भांपने का यन्त्र लगा होता है शायद। नीता ने अपने ब्लाउज को ठीक  उभर को साड़ी से ठीक से ढक लिया। नीता को सहमा देख कर उस बुढ्ढे के लण्ड में और जवानी भर गयी। वो अपना मुंह खोल बेशर्म की तरह मुस्कुराने लगा। उसके सामने की दांत लंबी और बदसूरत थी। उसके चेहरे को देख कर नीता के मन में घिन्न हो रहा था। वो रवि के और निकट आ गयी और उसकी बाँह को पकड़ कर बोली “चलिए यहाँ से। अब बस चली गयी तो फिर लड़ाई करके क्या फायदा?”


“अरे भैया! हम भी सीतामढ़ी ही जा रहे हैं, चलिएगा हमारे बस पर?” सर पर गमछा बांधे, बड़ी मूँछ और विशाल काया वाले एक हट्टे कट्ठे आदमी ने कहा। 


“कब खुलेगी बस?”


“बस अब निकलबे करेंगे। उधर 1785 नंबर वला बस खड़ा है। सीट भी खालिये होगा। अइसे भाड़ा त 700 रुपइया है लेकिन आप 500 भी दे दीजियेगा त चलेगा। आप पैसेंजर को बइठाइये हम दू मिनट में आते हैं।”


रवि नीता को लेकर बस  पहुंचा। उसने अन्दर झाँक कर देखा, बस में 8-10 मर्द थे और दो-तीन औरत। सब गांव के थे। बांकी पूरा बस खाली था। “बस में सब देहाती सब हैं, अंदर बदबू दे रहा है। तुम इसमें जा पाओगी? दिक्कत होगा तो आज छोड़ दो, कल चली जाना?”


“कल फलदान है, जाना ज़रूरी है। मैं चली जाउंगी, आप फिक्र मत कीजिये।”


“हम्म! तुम अंदर बैठो, मैं तुम्हारे लिए पानी का बोतल ला देता हूँ।”


नीता अंदर गयी। पर अंदर बदबू बहुत थी। शायद पैसेंजर में से कुछ लोगों ने देसी शराब पी रखी थी। ऊपर से गर्मी अलग। नीता उतर कर बस से नीचे आ गयी। रात के दस बज रहे थे। बस स्टैंड पर कुछ ही लोग थे। बस के आस पास कूड़ा फेंका हुआ था और पेशाब की तीखी गंध आ रही थी। नीता बस से थोड़ी दूर गयी। उसने चारों तरफ घूम  देखा। यहाँ उसे कोई नहीं देख रहा था। उसने अपनी साड़ी ऊपर उठाई, पैंटी नीचे सरकाया और बैठ कर पेशाब करने लगी। दूर लगे बस के हेडलाइट की रौशनी में उसकी सफ़ेद चिकनी गाँड़ आधे चाँद की तरह चमक रही थी। वो पेशाब करके उठी, और जैसे ही पीछे मुड़ी, सामने बदसूरत शक्ल वाला वो बुढ्ढा अपनी दाँत निकाले मुस्कुरा रहा था। नीता काँप उठी। उसके चेहरे पर वही बेशर्मी वाली मुस्कराहट थी। उसका एक हाथ नीचे धोती के बीच कुछ पकड़े हुआ था। पर वो क्या पकड़े हुआ है ये नीता नहीं देख पा रही थी। नीता के लिए ये समझना कठिन नहीं  कि वो क्या पकड़े हुआ है। पर वो रवि के औजार से काफी बड़ा था। 


बुढ्ढा नीता की तरफ बढ़ने लगा। नीता घबरा कर इधर उधर देखने लगी। तभी उसे रवि आता दिखा। वो दौड़ कर रवि के पास पहुंची। रवि डर से पीली पर गयी नीता को देख कर बोला “क्या हुआ?”


“व…वो आ… आदमी!” नीता घबराई हुई थी। इससे पहले वो कुछ बोलती रवि उस आदमी की तरफ लपका। 


“माधरचोद! भोंसड़ी वाले!” जब तक बुढ्ढा कुछ बोले तब तक उस पर दो झापड़ पड़ चुके थे। “हरामज़ादे, दो कौड़ी के इंसान ! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी की तरफ देखने की?”


वो सम्भला भी नहीं था की दो-चार हाथ उसपर और लग चुके थे। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि नीता को कुछ समझ में नहीं आया। तब तक बस ड्राइवर के साथ दो लोग और जमा हो गए थे। नीता को उस बुढ्ढे पर दया आ गयी। और फिर उसे बुढ्ढे ने कुछ किया भी तो नहीं था। उसने तो बस देखा था। खुले में वो पेशाब करेगी तो गलती उसे देखने वाले की थोड़े ही है। 


“अरे जाने दीजिये!” नीता ने रवि के हाथ को पकड़ कर उसे रोका। 


“बेटीचोद! ख़बरदार जो किसी औरत की तरफ आँख उठा कर देखा तो, दोनों आँखें फोड़ दूंगा। रंडी की औलाद… साला।”


“अरे साहब! जाने दो न, क्यों छोटे लोगों के मुंह लगते हो, इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, आपका मुंह ख़राब होगा।” एक पैसेंजर ने कहा। रवि गुस्सा थोड़ा शांत हो चूका था। 


“नीता, कल ही जाना। अभी जाना सेफ नहीं है।”


“आप भी न! तिल का ताड़ बना देते हैं।  कुछ नहीं हुआ है। मैं ऐसे ही डर गयी थी। बस में दो-तीन औरतें हैं। कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर  फिर मेरे पास मोबाइल है न। कोई प्रॉब्लम होगी तो मैं कॉल कर लुंगी। आप टेंशन मत लीजिये।” नीता ने रवि को शांत करते हुए कहा। 


“अरे तुम समझती नहीं हो। जब तक तुम घर नहीं पहुँच जाओगी तब तक मैं टेंशन में रहूँगा। बस छोड़ो मैं तुम्हे गाड़ी से पहुँचा देता हूँ।”


“आप बेवजह परेशान होते हैं। आपको ऑफिस का काम है। आप निश्चिंत होकर जाइये। मैं घर पहुँच आपको कॉल कर दूंगी।”


“ठीक  है। कोई भी प्रॉब्लम हो तो तुरंत मुझे कॉल करना। सारे एसपी-डीएसपी को मैं जानता हूँ। पुलिस तुरंत वहां पहुँच जाएगी।” वो बस में घुस चूका था। “यहाँ बैठ जाओ। खिड़की के पास। गर्मी नहीं लगेगी।”
नीता बस के दरवाजे के पास वाली खिड़की से लगी सीट पर बैठ गयी। “आप टेंशन नहीं लीजियेगा, मैं सुबह आपको कॉल करुँगी। रात बहुत हो गयी है। खाना टेबल पर रखा हुआ है। ठंढा हो गया होगा, माइक्रोवेव में गर्म कर लीजियेगा। रात बहुत हो गयी है, आपको सुबह ऑफिस भी जाना है। अब आप जाइये।”


“ड्राइवर कहाँ गया? चलो! अब स्टार्ट करो। अब कोई पैसेंजर नहीं आने वाला।”


बस स्टार्ट हो धीरे धीरे बढ़ा, रवि अपनी गाड़ी में बैठ कर घर की तरफ निकला। बस जैसे ही बस स्टैंड से निकलने वाला था वो बुढ्ढा दौड़ कर बस में चढ़ गया। नीता घबड़ा गयी और अपने पर्स से मोबाइल निकालने लगी। 


बुढ्ढा बोला “अरे मैडम! हम आपका क्या बिगाड़े थे? बिना मतलब के हमको पिटवा दिए।”


बुढ्ढे की आवाज़ सुन कर नीता का भय थोड़ा कम हुआ। पर उसके मुंह से दारू की बास बहुत तेज़ आ रही थी। “तुम मुझे वहाँ घूर क्यों रहे थे?”


“हम घूर कहाँ रहे थे? बहुत ज़ोर से पेशाब लगा था। आपके हटने का इंतजार कर रहे थे। बूढ़ा हुए, आँख कमज़ोर है।  हमको त पता भी नहीं चला कि वहां कोई मरद है कि कोनो औरत। अब इस उमर में अइसा नीच हरकत हम करेंगे? बहु बेटी की उमर की हैं आप।”


बुढ्ढे की बात सुन कर नीता कंफ्यूज हो गयी। नीता का सिक्स्थ सेंस चीख चीख कर कह रहा था की बुढ्ढा का इरादा ठीक नहीं है पर बुढ्ढे की बातों में सच्चाई लग रही थी। और फिर बुढ्ढे ने कुछ किया तो नहीं था। उसके कारन बेचारा बिना मतलब का पिटाई खा गया। “ठीक है। पर यहाँ क्यों खड़े हो? पीछे जा कर बैठो।”


“मैडम खलासी हैं, यहीं खड़ा रहना काम है।”




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Episode 3 (Part I)
बस असल में किराये पर रांची आयी थी। कुछ ऊपरी आमदनी हो जाये, इसलिए लौटते समय ड्राइवर और कंडक्टर ने कुछ पैसेंजर बिठा लिए थे। सभी पैसेंजर अगल बगल के थे। केवल नीता का ही सफर रात भर का था। नीता कुछ ही देर में सो गयी। ये कहना मुश्किल है की किसने - खिड़की से आ रही हवा ने उस बुढ्ढे ने नीता के ब्लाउज पर से उसके साड़ी की पल्लू हटा दी थी। बुढ्ढा लाल ब्लाउज के ऊपर से अंदर छिपे खजाने का मूल्यांकन कर रहा था। अपने आँखों से घूर घूर कर नीता के चूची की ऊँचाई, गोलाई, और अकार माप कर अपने मस्तिष्क में उसके वक्षस्थल का टोपोलॉजिकल मैप तैयार कर रहा था। जब तक बस में और पैसेंजर थे तब तक तो बुढ्ढा दूर से ही अपने आँख सेंक रहा था और अपने लण्ड में अंगड़ाई लेती जवानी को अपने हाथों से सहला रहा था। आखिरी पैसेंजर के उतरने के बाद बुढ्ढे ने अपने लण्ड को धोती की कैद से आज़ाद कर दिया और उसकी लम्बी बन्दूक नीता की तरफ तन गयी। 


पूरे बस में एक अकेली लौंडिया, वो भी जवान, भरे पूरे छरहरे बदन वाली, को देख कर बुढ्ढे के अंदर की वासना छलक छलक कर बाहर आ रही थी। पर वो ये भी जानता था की अगर लौंडिया ने कम्प्लेन कर दिया तो बस के नंबर से उसे खोजना आसान होगा। और साला उसका भतार भी तो गुंडा ही लगता है। पुलिस ने नहीं भी पकड़ा तो वो माधरचोद उसकी जान ले लेगा। वो वासना और भय मिश्रित भावना से नीता की तरफ झुका और उसके बदन को सूंघने लगा। इत्र और क्रीम में सराबोर नीता के बदन की खुशबू बुढ्ढे को पागल बनाये जा रही थी। वो अपना जीभ निकाल कर नीता के होंठों को चाटना चाह रहा था। जीभ तो उसने निकाली, नीता के होंठों के पास भी ले गया, पर छूने की उसे हिम्मत नहीं हुई। एक हाथ से वो अपने लण्ड को मसल रहा था, दुसरे हाथ से हिलती हुई बस को पकड़े हुए अपने जीभ को नीता के बदन से एक धागे भर की दूरी पर रखे उसके पूरे बदन को मानो चाट रहा हो। 


बुढ्ढे के अंदर वासना और भय के बीच का महासंग्राम सुरु हो चूका था। कभी उसके मन में ख्याल आता कि ठोक दे साली को और फेंक दे रास्ते में। जो होगा देखा जायेगा। फिर उसे लगता कि इस बुढ़ापे में वो पुलिस से कहाँ कहाँ भागता फिरेगा? और बुढ़ापे में जेल? न बाबा! वो किंकर्तव्यविमूढ़ सी स्थिति में नीता के बगल वाले सीट पर जा कर बैठ गया। रण्डियाँ तो उसने कई चोदी थी, पर रण्डियों में वो बात कहाँ? एक बड़े घर की सुन्दर, जवान लौंडिया के बगल में, जाँघ से जाँघ सटा कर बैठने मात्र से ही उसका लण्ड उसकी गोद में क़ुतुब मीनार की तरह खड़ा हो चूका था।  वो कभी लाल ब्लाउज के ऊपर वाले हिस्से से झलकती नीता के चूची के उभार को देखता, कभी उसके रसीले लाल होंठों को तो कभी सफ़ेद चिकनी पेट पेट को। कई बार तो वो अपना हाथ नीता के चूचियों तक ले गया। उसका जी कर रहा था कि उन भरपूर चूचियों को हाथों में लेकर नीम्बू की तरह निचोड़ दे! पर वो उन्हें हल्का छू कर वापस अपने लण्ड पर आ गया। वो अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर फिर वो शांत हो गया। वो अपने लण्ड के रस को ऐसे ही बर्बाद नहीं करना चाहता था, वो भी तब जब एक ख़ूबसूरत जवान लौंडिया बगल में हो। नीता की तरफ घूम कर उसने अपना लण्ड नीता की जांघ पर दबाया। पर ज़ोर से दबाने की हिम्मत उसमे न थी। 


बुढ्ढा बेचैन था, कभी अपना लण्ड बाहर निकाल कर हिलाता, कभी लण्ड को धोती में ढक कर नीता को घूरता, कभी उसकी चूचियों के ऊपर हल्का हल्का हाथ सहलाता तो कभी उसके चेहरे के पास जा कर उसके बदन की खुसबू लेता। करीब आधे घंटे इस तमाशा के चलने के बाद रोड के जर्किंग से नीता जाग गयी। अपने सीने को बिना आँचल के देख कर वो हड़बड़ा  गयी और आँचल उठा कर अपने वक्ष को ढकने लगी। तभी उसकी नज़र बगल में बैठे बुढ्ढे पर गयी। बुढ्ढे ने घबरा कर अपने लण्ड को धोती में छिपाया। बुढ्ढे को अपने बगल में बैठा देख कर नीता गुस्से से तमतमा गयी “हिम्मत कैसे हुई तुम्हे यहाँ बैठने की?”


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Episode 3 (Part II)

“हद करती हैं मैडम आप भी! एक त खलासी वला सीट पर बइठ गए हैं ऊपर से गरम हो रहे हैं। बताइये हम कहाँ बैठेंगे? खलासी हैं, ड्राइवर को बताना होता है, दरवाज़ा के पास वाला सीटे पर न बइठेंगे? आप दुन्नु मिया बीबी बिना बाते के गुस्सा में रहते हैं।” उस बुढ्ढे ने ऐसे निरीह हो कर कहा कि नीता के लिए अपना गुस्सा बनाये रखना संभव नहीं था। 



“ठीक है! मैं पीछे जा कर बैठ जाती हूँ।” नीता अपना सामान समेटने लगी। वो इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ थी कि उसके अलावा बस में और कोई पैसेंजर नहीं है। 


“देखिये मैडम, हम गरीब ज़रूर हैं, पर नीच नहीं हैं। हम नीच जाती के भी नहीं हैं। जात के ब्राह्मण हैं। ऊ त किस्मत का खेल है कि खलासी हो गए। इतने गेल गुजरल नहीं हैं कि हमरा बगल में बइठने में भी आपको तकलीफ हो!” ईश्वर ने उस बुढ्ढे को जितनी बुरी शक्ल दी थी उतनी ही प्रभावशाली वाणी दी थी। वो शायद सम्मोहन विद्या जनता था। बातों में वो किसी को भी प्रभावित कर सकता था।  वो तो रवि ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया, वरना वो कभी रवि के हाथों पिटाई नहीं खाता। 


“ऐसी बात नहीं है, तुमने ही तो कहा की यहाँ तुम्हारी सीट है।”
“है तो आपके बइठ जाने से अइसन थोड़े ही है कि सीट हमरा नहीं रहेगा? आप आराम से बइठिए। हमको कोनो दिक्कत नहीं हैं।”


नीता फिर कन्फ्यूज्ड थी। बुढ्ढा बातों से बहुत शरीफ लगता है। पर, उसके व्यवहार से बार बार संदेह होता था। कहीं उसी ने उसके ब्लाउज पर से आँचल तो नहीं हटाया? ,नहीं, इतने पैसेंजर के सामने बुढ्ढे की हिम्मत नहीं होगी ऐसा करने की। कितना सीधा सादा बुढ्ढा है। शक्ल ख़राब होने से आदमी थोड़े ही ख़राब हो जाता है।  मैं बिना मतलब ही इसपर संदेह कर रही हूँ। फिर उसके धोती में टेंट कैसा है? इसका लण्ड कहीं खड़ा तो नहीं? पर इतना बड़ा? इतना बड़ा कैसे हो सकता है? रवि का तो इतना सा है! कुछ और रखा होगा। गांव देहात में लोग धोती के अंदर पोटली में पैसा भी तो रखते हैं। शायद वही हो?




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Episode 3 (Part III)

“कौन कौन है तुम्हारे परिवार में?”


“क्या बताएं मैडम? बीबी पहले बच्चे को जनम दे कर ऊपर चली गयी। बड़ा मुश्किल से बीटा को पाल पोष कर बड़ा किये त उ भी शादी के बाद बदल गया। जब से पुतोहु घर में आयी घर में हमरे लिए जगहे नहीं बचा। नहीं त आप ही बताइये ई बुढ़ापा में रात रात भर कहे खटते?”


नीता को बुढ्ढे की बात सुन कर उसपर दया आ गयी। अब वो बुढ्ढा उसे उतना घृणा का पात्र नहीं लग रहा था। “बीबी के मरने के बाद तुमने दूसरी शादी नहीं की?” नीता की नज़र बार बार उस बुढ्ढे की धोती में बने टेंट पर जा रही थी। वो ये कन्फर्म करना चाह रही थी कि लण्ड ही है या कुछ और?


नीता को अपने लण्ड की तरफ घूरते देख कर बुढ्ढे का लण्ड और तमतमा रहा था। “कइसे कर लेते मैडम? सौतेली माँ से बेटा को लाड प्यार थोड़े ही मिलता।”


“तो अभी कहाँ रहते हो?”


“कहाँ रहेंगे मैडम? अब त बस में ही जीना है, इसी में मरना है! आप आराम कीजिये, इस बुढ्ढे की कहानी सुन कर क्या करियेगा?”


नीता ने अपनी आँखें बंद कर ली। पर उसकी आँखों के सामने बार बार बुढ्ढे के धोती पर बना टेंट आ रहा था। वो जानना चाह रही थी कि वो आखिर है क्या? लण्ड ही है या कुछ और? और अगर लण्ड ही है तो इतना बड़ा लण्ड आखिर दिखता कैसा है? क्या कुणाल के साथ हाथापाई में उसने अपनी गाँड़ पर जो महसूस किया था वो भी लण्ड  ही था? क्या सभी लण्ड बड़े होते हैं, केवल रवि का ही छोटा है? क्या इसलिए उसने चुदाई के बारे में जो भी सुना था उसे वैसा कोई भी मज़ा नहीं आया? क्या इसलिए रवि उसे गर्भवती नहीं कर पा रहा? ओह! अगर ऐसी बात है तो उसकी किस्मत तो इस बुढ्ढे से भी गयी गुजरी है। बस में खलासी है, बीबी के मरने के बाद कम से कम रंडी को तो चोदा ही होगा? वही है जिसे चुदाई का सुख अभी तक नहीं मिला है। और कुणाल? ओह! आज भी वो पल याद आते ही देखो कैसे दिल की धड़कन बढ़ गयी? पता नहीं उसने जान बूझ कर मेरे स्तन को दबाया था या अनजाने में। पर वो मज़ा कभी रवि के दबाने से नहीं आया था। क्या कुणाल मेरी चुदाई के इरादे से आया था? क्या उस दिन मौका मिलता तो वो मुझे चोद देता? ओह! काश ! कितना मज़ा आता? मैं भी बेवकूफ थी। थोड़ा सा बदन को ढ़ीला करके छोड़ती तो उसकी हिम्मत बढ़ती। नहीं कुछ तो चूची तो और अच्छे से तो मसलता ही। अब तो कोई मौका भी नहीं मिलना। क्या मेरी जिंदगी बिना चुदाई के मज़े लिए ही ख़तम हो जाएगी? पर इस बुढ्ढे की धोती में बना टेंट क्या है?


नीता ने जानने के लिए हल्का सा आँख खोल कर बुढ्ढे की गोद में देखा। उसका क़ुतुब मीनार अपनी पूरी ऊंचाइयों पर उसकी  गोद में बस के साथ लय मिला कर डोल रहा था। नीता ने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ये तो लण्ड ही है। इतना बड़ा? हे भगवान्! रवि का मिर्च है और ये तो पूरा कद्दू है।  इतना बड़ा अंदर जायेगा? मेरी तो चूत ही फट जाएगी! और ये बुढ्ढा बहुत भोला भाला बन रहा था। ये तो एक नंबर का हरामी है। पर कुछ करने की तो इसमें हिम्मत होगी नहीं। बस में और भी पैसेंजर हैं। बस मुझे देख कर खुश होता रहेगा। होने दो खुश, मुझे क्या प्रॉब्लम है? बस एक बार जी भर कर देखना चाहती हूँ, आखिर इतना बड़ा लण्ड होता कैसा है? नहीं, अगर बुढ्ढे ने देखते हुए देख लिया तो मेरे बारे में क्या सोचेगा? मेरी शादी हो चुकी है। ये ठीक नहीं। चुपचाप सोने की कोशिश करती हूँ। 





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Episode 4 (Part I)

इधर बुढ्ढा बेचैन था, तो उधर नीता का मन में उथल पुथल। पिछले ४ साल से वो किसी की पत्नी होने का सुख नहीं उठा पा रही थी। शादी का मतलब घर की नौकरानी होना तो नहीं होता? पति पत्नी को सम्भोग का सुख देता है, बदले में पत्नी पति को शारीरिक और सांसारिक सुख देती है। ये कैसा बंधन हुआ कि वो पति को सबकुछ दे और पति उसे सम्भोग का सुख भी न दे? नीता की आँखें बंद थी पर ह्रदय बेचैन! इधर बुढ्ढा नीता के सोने का इंतज़ार कर रहा था। जब वो आश्वस्त हो गया की नीता सो गयी होगी तो उसने हल्के से नीता के आँचल को पकड़ कर खींचा। नीता ने आँख के कोने से देखा की बुढ्ढा उसके बदन पर से आँचल हटा रहा है। वो समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? उसके अंदर की पतिव्रता नारी कह रही थी की अभी उठ कर चिल्लाओ। जब पैसेंजर सब मिल कर बुढ्ढे की पिटाई करेंगे तो इसके सर पर से जवानी का भूत उतर जायेगा। पर उसके अंदर की अतृप्त कामना की मूर्ती कह रही थी की थोड़ा मज़ा तू भी ले ले। फिर शायद ऐसा मौका मिले न मिले? और फिर बुढ्ढा करेगा ही क्या? अधिक से अधिक ब्लाउज के ऊपर से निहारेगा। इसमें उसका क्या बिगड़ता है? कोई कपड़ा थोड़े ही उतार रहा, बस आँचल ही तो हटा रहा।  कॉलेज में जब वो जीन्स टॉप में होती थी तो कौन सा उसके ऊपर आँचल होता था? जैसे टॉप में दिखती थी, वैसा ही तो ब्लाउज में दिखेगी। देख लेने दो!


इससे पहले नीता ने कभी जान बूझ कर ऐसी हरकत नहीं की थी। इस शरारत की बात से ही उसके दिल की धड़कने तेज़ होने लगी, उसकी साँसे तेज़ होने लगी। उसके निप्पल तन रहे थे और ब्लाउज टाइट होने लगी। अपने जाँघों के बीच भी नीता को एक अजीब सेंसेशन हो रहा था। कुछ कुछ वैसा ही जैसा कुणाल के चुची दबाने के बाद हुआ था। पर अबकी बार वो सेंसेशन और तीव्र है। शायद इसलिए की उस समय वो घर पर थी, परिवार, समाज के बंधन में। अभी वो सभी बंधनो से मुक्त है। बस में उसे कोई नहीं पहचानता। किसी ने खलासी को उसका पल्लू हटाते देख भी लिया तो सब खलासी को बोलेंगे। वो तो नींद में है। उसे भला कोई कैसे बुरा समझेगा? नीता अपने जाँघों के बीच से रिसती गीलापन महसूस कर सकती थी। वो अपने जांघ को फैला  चूत को कुछ आज़ादी देना चाहती थी। पर वो तो सो रही है, अगर उसने पैर हिलाया तो बुढ्ढे को पता चल जायेगा की वो सोई नहीं है। नीता ने अपनी सारी ऊर्जा अपने साँस को कंट्रोल करने में लगा दी। 


बुढ्ढा इस बार केवल नयनसुख लेकर रुक जाने के इरादे से नीता की तरफ नहीं बढ़ा था। नीता की नर्मी भड़ी बातों से बुढ्ढे की हिम्मत थोड़ी बढ़ गयी थी। उसके सीने पर से आँचल हटा देने के बाद बुढ्ढे ने अपना हाथ वापस नहीं खींचा, बल्कि उसकी चूची पर ही रखा, और हल्का हल्का उसकी चूची को सहलाने लगा। नीता की चूचियाँ  ब्लाउज के बटन को तोड़ कर बाहर निकलने को बेताब हो उठीं। उसके दिल की धड़कने फुल स्पीड पर चल रही राजधानी एक्सप्रेस तरह चल रही थी। अरे! ये तो मेरी दबा रहा है? सीट ऊंची है, पीछे से दिख तो नहीं रहा होगा। पर मैं क्या करूँ? बुढ्ढे को मज़े लेने दूँ? देखती हूँ कहाँ तक जाता है। अधिक दूर तक जाने की हिम्मत तो इसमें है नहीं।





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Episode 4 (Part II)

जब बुढ्ढे ने उसकी पूरी चूची को अपने हाथों में भरा और उसे दबाते हुए ऊपर की तरफ उठाया तो एक करंट की तरंग नीता की चूचियों से चलती हुई सीधी उसकी चूत तक पहुँच गयी। नीता को लगा जैसे उसके चूची से  गीलापन की एक धारा बह निकली हो। आनंद के जिस झूले में अभी वो हिचकोले खा रही थी, इससे पहले उसने उस झूले को कभी देखा तक नहीं था। वो खुद अपने कंट्रोल से बाहर जा रही थी। वो अपनी दाँत को पीस रही थी, और आँख को ज़ोर से बंद किये हुए थी। उसका पूरा बदन अकड़ा हुआ था। 


चूची पर दवाब बढ़ाने के बाद बुढ्ढे को नीता के दिल की धड़कन महसूस हुई, और वो समझ चूका था कि लोहा गरम है, अब बस हथौड़ा मारना है। उसका हथौड़ा भी काफी गरम हो चूका था! उसने नीता की चूची को और कॉन्फिडेंस से मसलना शुरू कर दिया। नीता आनंद के ऐसे मुकाम पर पहुँच थी जहाँ से सही-गलत, उचित-अनुचित, तर्क-कुतर्क ये सब मनुष्य नहीं सोचता। बस एक जंगली जानवर की तरह, सारी सभ्यताओं, सामाजिक बंधनों, दिन के उजाले में अपने अंदर की गन्दगी को छुपाने के लिए मनुष्य के द्वारा बनाये नियम जो केवल कमज़ोर असहाय लोगों के लिए हैं, से मुक्त हो वो बस अपनी मूल भूत आवश्यकताओं की तरफ निकल चुकी थी। उसका अंतर्मन बुढ्ढे से निवेदन कर रहा था - थोड़ा और ज़ोर से, तुम्हे रोका किसने है? किससे डर रहे हो? और ज़ोर से दबाओ न। 


नीता से कोई विरोध न पा कर बुढ्ढे का हौसला उसके लण्ड की तरह ही सशक्त हो चूका था।  उसने दोनों चूचियों के बीच में बानी घाटी में अपना उंगली घुसा दिया, पसीने से भीगी नीता की छाती में आसानी से उसकी ऊँगली फिसलती हुई अंदर चली गयी। उसने ऊँगली दायें बाएं घुमा कर नीता के चूची को छुआ। पैसे ऐसे थोड़ा थोड़ा रस से बुड्ढे की प्यास बुझने की जगह और तीव्र होती जा रही थी। उसने हिम्मत का एक झटका और देते हुए नीता के ब्लाउज का एक बटन को खोल दिया। अपने संपूर्ण अकार में नीता की उत्तेजित चूचियाँ बाहर आने को मचलने लगी, वो बस बिलख बिलख कर नीता से दया की भीख माँग रही थी - क्यों कैद कर रखा है हमें? हमें भी थोड़ी आज़ादी की हवा खाने दो, क्षण भर के लिए हमें भी खुशी से जीने दो। 


बुढ्ढे का एक बटन पर ही रुक जाने का कोई इरादा नहीं था। कुछ ही देर बाद नीता के ब्लाउज के सभी बटन खुल चुके थे, और नीता का लाल ब्लाउज खुले हुए दरवाज़े की तरह उसके चूचियों के दोनों तरफ लटक रहा था। बस की दुँधली रौशनी में सफ़ेद संगमरमर जैसे गोल, सुडौल, मादक स्तन के ऊपर काला ब्रा ऐसा दृश्य उत्पन्न कर  जिसे देख कर कोई कवी पूरी की पूरी काव्य की रचना कर दे। पर वो बुढ्ढा न तो कवी था, और न ही उसकी दिलचस्पी उस दृश्य की सुंदरता में थी। वो तो एक भेड़िये जैसा था, जो अपनी भूख मिटाने के लिए सामने पड़े शिकार को नोंच नोंच कर खा जाता है। बस भेड़िया अभी शिकार कर ही रहा था, एक बार शिकार गिरफ्त में आ जाये तो वहशी दरिंदे की तरह उसपर टूट पड़ेगा। 


बुढ्ढे ने नीता की छाती को हाथ से सहलाया। उसने कभी किसी औरत को इतनी नज़ाक़त से नहीं छुआ था।  वो तो रंडियों को चोदने वाला था। लोग रंडियों को नीच समझते हैं, और उसे चोदते भी घृणा से हैं। रंडियाँ प्रेम से चुम्बन लेने के लिए, या नज़ाक़त से बदन सहलाने के लिए नहीं होती, वो तो बस भूख मिटने के लिए होती हैं। जैसे कई दिनों से भूखा भिखारी सामने पड़ी रसमलाई पर टूट पड़ता है, वैसे ही रंडीबाज रंडी को देख कर उसके जिश्म पर टूट पड़ता है। पर नीता रंडी नहीं थी। नीता जैसी सुन्दर, कुलीन औरत को छूने की बात बुढ्ढे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। जब वो उसके सामने अर्धनग्न अवस्था में लेटी हुई थी, तब उसके अंदर की वासना चाहे जितना उछाल ले रही हो, उसके अंदर इस कामना की मूर्ती के लिए एक इज्जत थी, एक सम्मान था। वो उसके इज्जत को लूटना नहीं चाहता था, बस उसके जिश्म से अपनी वासना की भूख को मिटाना चाहता था। 




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Episode 4 (part III)

नीता को भी कभी किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था। शादी के ४ साल में एक बार भी रवि ने नीता को निःवस्त्र नहीं किया था। बस उसकी साड़ी या नाइटी को ऊपर सरका कर उसे चोद लेता और फिर सो जाता। उसने न तो कभी उसकी चूची को मसला था, न ही चूमा था। रवि को तो ये भी नहीं पता होआ कि उसकी चूची कितनी बड़ी है, या उसके चूत पर बाल है या नहीं। पहली बार किसी दुसरे का हाथ उसकी जिश्म के उन हिस्सों पर पर रहा था जो वो दुनिया से छिपा कर रखती है। पहली बार उसे औरत होने का सुख मिल रहा था। वो इस सुख को बिना भोग किये इस बस से नहीं उतर सकती थी। उसके मन की बस यही तमन्ना थी की ये सफर कभी समाप्त न हो। 

बुढ्ढे का हाथ रेंगते हुए नीता की ब्रा में घुस गया और उसके चूची को टटोलना लगी, मानो कुछ ढूंढ रहा हो। वो नीता की तरफ झुका हुआ था। उसने अपने क़ुतुब मीनार को नीता की जांघ पर दबाया। उसके पुरुषत्व के सम्पूर्ण सामर्थ्य को नीता अपने जांघ पर अनुभव कर रही थी। उसका संयम अब जवाब दे रहा था। वो बेकाबू हुई जा रही थी। बुढ्ढे ने उसकी बायीं चूची को अपने दाएं हाथ में पकड़ कर दबाया और अपने मुंह को नीता के होंठों के पास ले गया। उसके मुंह से देसी दारू की तेज़ बास आ रही थी। उसके तेज़ बास से नीता को उल्टी सा आने लगा, पर अपने चूची की मालिश के मज़े को वो उल्टी से ख़राब नहीं कर सकती थी। वो आँखें बंद किये सिथिल पड़ी रही। बुड्ढे में अभी नीता को चूमने की हिम्मत नहीं थी। उसने नीता के ब्रा के फीता को उसके कंधे से सरका दिया और ब्रा को नीचे सरका कर उसकी चूचियों को पूरा नंगा कर दिया। 


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Episode 4 (part IV)

हे भगवान्! ये बुढ्ढा क्या कर रहा है? मैं पागल हो जाउंगी। बस के सारे पैसेंजर सो रहे हैं क्या? सो ही रहे होंगे, बहुत रात हो चुकी है। पर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा। ये रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। मेरी पूरी पैंटी गीली हो गयी होगी। बुढ्ढे ने नीता की गोद में पड़े उसकी हाथ को अपने लंड से छुआ। गरम गरम मोटा तगड़ा लण्ड हाथ में महसूस करके नीता विचलित हो रही थी। वो इस लण्ड को एक बार, बस एक बार अपने हाथ में लेकर ध्यान से देखना चाहती थी। पर वो अभी आँख नहीं खोल सकती थी। बुढ्ढे के लण्ड में बहती रक्त के प्रवाह को नीता महसूस कर रही थी, और इस एहसास ने उसकी चूत में रक्त के प्रवाह को बढ़ा दिया था। उसकी चूत अब धधक रही थी। मानो पूरे जंगल में आग लगा हुआ है। और उसी आग में फंसे हुए हिरन की भांति नीता का व्याकुल मन इधर उधर उछल रहा था। 

बुढ्ढा नीता की साड़ी को ऊपर सरकाने लगा। उसकी सफ़ेद, नरम, मुलायम जांघों के स्पर्श से बुढ्ढा बेचैन हो रहा था। शायद इससे पहले जीवन में  उसने कभी किसी औरत के सामने इतनी सब्र नहीं की थी। औरत सामने आते ही उसका सारा ध्यान चोदने पर होता था। चुदाई से पहले इतनी देर बर्दाश्त करने का सामर्थ्य उस बुढ्ढे में कभी नहीं था। पर आज न जाने क्यों? डर से या शायद इससे पहले उसने कभी किसी कुलीन, अच्छे घर की औरत को नहीं चोदा था इसलिए। पर कारन चाहे जो भी हो, आज उसका संयम सराहनीय था। बुढ्ढे का एक हाथ तो नीता के संतरे का रस निचोड़ने में लगा हुआ था, तो दूसरा हाथ जाँघों को सहलाते हुए उस गुलाबी गुफा की ओरे तेजी से बढ़ रहा था जिसमे नीता अपने यौवन के खजाने को छिपा रखी थी। 

बुढ्ढा निचोड़ तो नीता की चूची को रहा था, पर उसका रस नीता के गुलाबी गुफा से रिस रिस कर बह रहा था। जब तक बुढ्ढा नीता की चूची तक था, तब तो नीता मज़े ले रही थी। पर, जब वो तेज़ी से नीता की चूत की तरफ बढ़ा तो नीता परेशान हो गई। नीता ने ये नहीं सोचा था की वो ऐसे बदसूरत, अधेड़ उम्र के दो कौड़ी के इंसान के सामने अपने तन का सबसे बहुमूल्य हिस्सा खोल देगी। नीता भी ये समझती थी की अगर बुढ्ढा उसकी चूत तक पहुँच गया तो वो उसे अंदर घुसने से रोक नहीं पायेगी। उसे तो ये भी नहीं पता था की वो खुद को रोक पाएगी या नहीं? वो शादीशुदा है।  वो किसी गैर मर्द के साथ संभोग नहीं कर सकती। उसे रोकना ही होगा। पर कैसे? नहीं! वो बहुत तेज़ी से चूत की तरफ बढ़ रहा है। अगर उसने मेरी गीली पैंटी छू लिया तो उसे पता चल जायेगा कि मैं भी गरम हो गयी हूँ। न जाने वो मेरे बारे में क्या सोचेगा? ये विचित्र विडम्बना है कि आपके व्यवहार का निर्धारण आपके अपने विचार से अधिक दुसरे आपके बारे में क्या विचार रखते हैं इससे होता है। नहीं! अब सोचने का समय नहीं हैं, कुछ करना होगा। 


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Episode 5 (Part I)

“बद्तमीज़!” नीता ने बुढ्ढे को धक्का देकर अपने बदन से दूर हटाया। जल्दी से अपने साड़ी को नीचे सरका कर अपने ब्लाउज को ठीक करने लगी।


बुढ्ढा घबरा गया। उसका प्राण उसके कंठ में ही अटक गया। उसे पूरा विश्वास था कि नीता जगी हुई है और उसके हरकत का मज़ा ले रही है। पर नीता के प्रतिक्रिया ने उसे भौंचक कर दिया था। जब तक नीता अपने कपड़े को ठीक कर रही थी तब तक वो किंकर्तव्यविमूढ़ सा बगल वाली सीट पर बैठा रहा, मनो उसे लकवा मार दिया हो। उसका बुलंद क़ुतुब मीनार, जो अब भी धोती के बहार था, शाम के सूरजमुखी की तरह नीचे झुक चूका था। उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था जैसे उसके सीने को फाड़ कर बाहर निकल जायेगा। बुढ्ढे को होश तब आयी जब नीता अपने कपड़े को ठीक कर खड़ी हुई और उसकी गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दी। 


“हरामखोर! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की?” नीता ज़ोर से बोली ताकि बस के बांकी पैसेंजर उसकी आवाज़ को सुन कर जाग जाएं। पर जब नीता ने पीछे मुड़ कर देखा तो उसके होश उड़ गए।  वो पूरे बस में अकेली थी। वो घबड़ा गई।  वो सहम कर सिमट गयी। हे भगवान्! पूरे बस में कोई नहीं है। अगर बुढ्ढे ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की तो मैं क्या करुँगी? रात के १ बज रहे थे। दूर दूर तक सड़क पर अँधेरा था। वो चिल्ला कर मदद भी नहीं मांग सकती थी। उसने झट से अपने पर्स से मोबाइल निकाला और रवि को फ़ोन करने लगी।




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